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NCERT Solutions For Class 7 Hindi: Download PDFs

NCERT Hindi Solutions for Class 7: NCERT कक्षा 7 हिंदी पाठ्यक्रम को वसंत ,दुर्वा, और बाल महाभारत में बांटा गया हैं इन सभी पुस्तकों में हिंदी के विभिन्न विधाओं का ज्ञान समाहित हैं जिसके अध्ययन से विद्यार्थियों को हिंदी भाषा से जुड़ी अमूल्य जानकारी प्राप्त होगी।

वसंत

पाठ 1: हम पंछी उन्मुक्त गगन के

यह कविता कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ द्वारा लिखी गई है। कविता में पंछियों के माध्यम से कवि ने स्वतंत्रता की महत्वता का वर्णन किया है। पंछी कह रहे हैं कि हम खुले आकाश में उड़ने वाले प्राणी हैं। हमारे आकाश में रहने वाले पंख पिंजरे से टकराकर टूट जायेंगे। पंछी कह रहे हैं कि यदि वे आज़ाद होते तो सीमाहीन आकाश की सीमा को पार कर लेते हैं। अंत में पक्षी मनुष्य से आग्रह करते हैं कि चाहे हमारे घोसले नष्ट कर दें या आश्रय छीन लें लेकिन जब ईश्वर ने हमें पंख दिए हैं तो हमारी उड़ान में विघ्न मत डालो।

पाठ 2: दादी माँ

दादी माँ, शिवप्रसाद सिंह द्वारा लिखी गई कहानी है जिसमें लेखक ने अपनी दादी माँ का वर्णन किया है। लेखक ने अपने और अपनी दादी मां के बीच गहरे प्रेम की कहानी कही है। लेखक ने बताया है कि कैसे उनकी दादी माँ स्नेह और ममता से भरी थीं और कठिन वक्त में अपने परिवार के साथ खड़ी रहती थीं। लेखक की दादी की मृत्यु के बाद भी वह दादी को कभी भूल नहीं पाए हैं। शिव प्रसाद सिंह ने इस कहानी के द्वारा बड़ों के महत्व को समझाया है।

पाठ 3: हिमालय की बेटियाँ

हिमालय की बेटियाँ- नागार्जुन जी द्वारा लिखा गया एक प्रसिद्ध निबंध है। इस निबंध में लेखक ने हिमालय से निकलने वाली नदियों पर लिखा है और उन नदियों के प्रति आदर ,सम्मान एवं अपार श्रद्धा प्रकट की है। निबंध में लेखक ने गंगा, यमुना, सतलज, सिंधु, ब्रह्मापुत्र आदि नदियों का उल्लेख किया है और इन नदियों को हिमालय की बेटियाँ कहा है। लेखक के मन में इनके प्रति श्रद्धा भाव थे। ये बेटियाँ लेखक को दूर से शांत और गंभीर दिखाई देती थी। लेखक इन नदियों को माता से पहले बेटियों के रूप में देखते है।

पाठ 4 – कठपुतली

कवि भवानी प्रसाद मिश्र ने इस कविता में कठपुतलियों के मन की पीड़ा को दर्शाया है। कठपुतलियाँ धागों में बंधे-बंधे परेशान हैं और उन्हें दूसरे के इशारों पर नाचने में दुख होता है। वो सब धागे तोड़ कर आज़ाद होना चाहती हैं। इस दुख से बाहर आने के लिए एक कठपुतली विद्रोह शुरू करती है जिसे देखकर सभी कठपुतलियां स्वतंत्र होना चाहती। सभी की आजादी की जिम्मेदारी देख कठपुतली सोच में पड़ जाती है कि क्या वो सही कर रही है ?

पाठ 5 – मिठाईवाला

इस कहानी के लेखक भगवती प्रसाद वाजपेयी हैं। लेखक ने इसमें एक पिता का अपने बच्चों के प्रति स्नेह को दर्शाया है। लेखक ने बताया है किस तरह अपने बच्चों को खो देने के बाद एक वरिष्ठ पद का आदमी अपने पास के गांव जा कर खुद को समझाता है। कैसे वो अन्य बच्चों में उस खुशी को तलाश करता है। वह दूसरे बच्चों को खिलौने, मुरली एवं मिठाई बेच कर अपने मन को बहलाता है जिसके पास पैसे नहीं होते वो उन्हें मुफ्त में समान दे देता है और उन्हें खुश होता देखकर अपने बच्चों की झलक देखता है।

पाठ 6– रक्त और हमारा शरीर

इस पाठ में डॉ यतीश अग्रवाल ने हमारे शरीर में रक्त की भूमिका के बारे में बताया है। पाठ में लेखक ने रक्त, रक्त के घटक, रक्त की कमी से होने वाली बीमारियां और उनसे बचाव के ढंग बताए हैं। पाठ में डॉक्टर दीदी के माध्यम से रक्त समूह की जानकारी और ब्लड बैंक का महत्व बताया गया है। रख दो कोशिकाओं से बना होता है – लाल रक्त कोशिका है जो हीमोग्लोबिन से भरी होती हैं और सफेद रक्त कोशिकाएं जो संक्रमण से हमारा बचाव करती हैं। पाठ में रक्त-दान का महत्व समझाया गया है।

पाठ 7– पापा खो गए

प्रस्तुत पाठ विजय तेंदुलकर द्वारा लिखी गई एकांकी है। इस एकांकी में उन्होंने हमारे आसपास की निर्जीव वस्तुओं को सजीव वस्तुओं के रूप में दर्शाया है। इसमें निर्जीव वस्तुओं की पीड़ा को सजीव दिखाया गया है और पाठ के द्वारा समाज में बढ़ रहे बच्चों के अपहरण के किस्सों को दिखाया गया है। पाठ में पेड़ ,बिजली का खंबा ,लेटर बॉक्स आदि रात होने पर एक दूसरे से वार्तालब करते हैं । इस दौरान वो एक बच्ची को एक आदमी के द्वारा लाते देखते हैं। सारे पात्र उस लड़की को अपहरण होने से बचाते हैं।

पाठ 8– शाम एक किसान

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी ने अपनी कविता में शाम का एक बहुत ही सुंदर वर्णन किया है। शाम का दृश्य बहुत ही सुंदर है और पहाड़ बैठे हुए किसी किसान जैसा दिख रहा है। कवि ने प्रकृति के तत्व जैसे पहाड़ आकाश नदी पलाश के फूल आदि को किसान से जोड़ा है। आकाश की तुलना किसान के माथे पर बंधे साफे से की गयी है। पहाड़ के नीचे बह रही नदी किसान के पैरों पर चढ़ी चादर जैसी लग रही है। पलाश के लाल फ़ूल अंगीठी से दिख रहे हैं। अचानक मोर के बोलने से सब बदल जाता है और शाम हो जाती है।

पाठ 9– चिड़िया की बच्ची

इस कहानी के लेखक जितेंद्र कुमार हैं। लेखक ने इस कहानी में एक चिड़िया की स्वतंत्रता की तुलना एक अमीर सेठ के विवश जीवन से की है। सेठ माधव दास के पास सारे सुख सुविधाएं हैं और उनका जीवन संपन्नता से भरा है परंतु खुशी नहीं है। वहीं एक नन्ही सी चिड़िया के पास कोई सुविधा नहीं है । सेठ के बार-बार सोने के पिंजरे देने पर भी वह उसके पास नहीं आती है। उसके लिए सुनहरी धूप की कीमत सोने से बढ़कर है।

पाठ 10– अपूर्व अनुभव

इस कहानी को मूल्य रूप से जापानी में तेत्सूको कुरियानगी ने लिखा है। टोमोए नामक एक स्थान पर हर बच्चे का अपना एक पेड़ होता है जिस पर चढ़कर वह अपने आसपास की दुनिया को अपने नजरिए से देखते हैं। इस कहानी में तोत्तो चान का दोस्त यासुकी चान पोलियो से ग्रसित है। चुकी अपनी स्थिति के कारण वो पेड़ पर चढ़ नहीं सकता तोत्तो चान ने उसके लिए पेड़ से सटा कर एक तिपाई लगा कर उसे ऊपर खींच लिया। ये कहानी बड़ी सहजता से बताती है कैसे तोत्तो चान अपने दोस्त की मदद करती है।

पाठ 11 – रहीम के दोहे

कवि रहीम, अकबर के दरबार के प्रमुख सदस्य थे। उन्होंने अपने दोहे से समाज में जागरूकता और सही मार्गदर्शन दिया है। प्रस्तुत पाठ में उनके कुछ दोहों का वर्णन है। रहीम ने हमें अपने दैनिक जीवन में काम आने वाली बातें अपने दोहों के माध्यम से समझाई हैं। रहीम प्रेम के धागे को न तोड़ने की सलाह देते है क्योंकि एक बार भी यदि टूट गया तो जोड़ने पर गांठ लग जाती है। और वे कहते है कि अपने दुख को मन में रहना चाहिए। बाँटने पर लोग उसका मज़ाक बनाते हैं।

पाठ 12 – कंचा

कंचा पाठ में लेखक टी. पद्मनाभन ने बचपन का उल्लेख किया है। केसे बच्चों के बालमन में कल्पना और सहजता होती है, ये दर्शाया है। कहानी में अप्पू कंचों से बहुत स्नेह है। एक दिन स्कूल जाते हुए उसे दुकान पर सफ़ेद कंचे देखे। वो कक्षा में भी उनके बारे में सोचता रहा और मास्टर जी से डॉट और दंड मिला। वह घर जाते वक्त अपने पिता के द्वारा दिए गए फीस के पैसों से कंचे खरीद लेता है। लेखक इस कहानी के माध्यम से बच्चों के बालमन को दर्शाने में सफल हुए हैं।

पाठ 13– एक तिनका

यह कविता अयोध्या सिंह उपाध्याय ने लिखी है। कविता में उन्होंने घमंड न करने की सीख दी है। कवि बताते हैं कि वह घमंड से भरे हुए थे। एक दिन अपनी छत की मुंडेर पर खड़े अचानक एक तिनका उनकी आंख में गिर जाता है। कवि की अकड़न इस समय तिनके से पानी–पानी हो गई। तब कवि ने खुद से प्रश्न किया — तुझमें इतना घमंड क्यों है? केसे किसी का घमंड तोड़ने के लिए एक छोटा सा तिनका काफी होता है ये समझाया है। संसार में कोई श्रेष्ठ नहीं होता है।

पाठ 14– खान पान की बदलती तस्वीर

यह निबंध प्रयाग शुक्ल जी द्वारा लिखा गया है। निबंध में पीछे दशकों से हमारे खानपान की संस्कृति में आए बदलाव की बात की गई है। निबंध में बताया गया है की किस प्रकार आज कल हर तरह और हर प्रांत के व्यंजन आसानी से कहीं भी उपलब्ध हो जाते हैं। फास्ट फूड आज कल सब खाते हैं। ब्रेड आज कल नाश्ते में खाना आम बात है। खान–पान की संस्कृति कैसे नई पीढ़ी को प्रभावित कर रही है। लेखक हमें सूझ–भूज से खाने की सलाह देते है।

पाठ 15 – नीलकंठ

यह रेखाचित्र महादेवी वर्मा द्वारा लिखा गया है। कविता में मनुष्य और पक्षी के प्रेम का सुंदर वर्णन है। लेखिका ने विस्तार से अपने इस पशु का स्वभाव, व्यवहार लिखा है। लेखिका मोर के 2 बच्चे ले आती हैं। अपने इस पालतू पक्षी का नाम वो नीलकंठ और राधा रखती हैं। नीलकंठ स्वभाव से स्नेही और निडर है और लेखिका उससे अत्यंत प्रेम करती हैं। एक बार लेखिका को एक घायल मोरनी मिली, कुब्जा। उसे नीलकंठ और राधा के साथ रखा पर उनकी मित्रता नहीं हुई। उसने राधा के अंडे तोड़ दिए। एक दिन लेखिका को नीलकंठ भी मृत मिला।

पाठ 16 – भोर और बरखा

भोर और बरखा श्री कृष्ण की भक्त मीराबाई द्वारा रचित दो पद है। पहला पद – भोर अर्थात सुबह में मीराबाई ने श्री कृष्ण को नींद से जगाने का उल्लेख किया है। कैसे वो श्री कृष्ण को उठाना चाहती हैं और लिखती हैं की सारे घरों के दरवाजे खुल गए है, गोपियाँ दही मठ रही हैं, ग्वाल बाल गाय चराने जा रहे हैं। दूसरा पद बरखा अर्थात वर्षा ऋतु के बारे में है। वे बताती हैं कि बादलों के आने पर उन्हें भनक लग जाती है कि कृष्ण आ रहे हैं। हर तरफ शीतल हवा चलने लगती है। मीरा खुशी से गीत गाना चाहती हैं।

पाठ 17 – वीर कुंवर सिंह

इस पाठ में स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा वीर कुंवर सिंह की वीरता का वर्णन है। वीर कुमार सिंह सन् 1857 संग्राम के एक प्रमुख सेनानी थे। पाठ में उनकी युद्ध कला से लेकर उनके उदार व्यक्तित्व का उल्लेख है। कुंवार सिंह ने अपने पिता की मृत्यु के बाद जगदीशपुर रियासत संभाली और अंग्रेजों से डटकर लड़ाई की। आधुनिक साधनों के बल पर अंग्रेज़ों ने जगदीशपुर पर कब्ज़ा कर लिया परंतु कुंवर सिंह ने हार नहीं मानी। वे युद्ध कला में निपुण और सामाजिक कार्यों में भी आगे थे। उन्होंने कई निर्धनों की सहायता की थी, पानी के स्त्रोत बनवाए थे जिससे लोग हमेशा उनके साथ खाड़े रहते थे ।

पाठ 18 - संघर्ष के कराण मैं तुनुकमिजाज हो गया धनराज

यह पाठ विनीता पांड्या ने हमारे देश के प्रमुख हॉकी खिलाड़ी धनराज पिल्लै पर लिखा है। इस पाठ में धनराज पिल्लै के बचपन से लेकर अब तक की प्रमुख और रोचक घटनाओं का वर्णन है। कैसे धनराज पिल्लै एक गरीब परिवार में बड़े हुए और अपने साथियों से किट उधर ले कर हॉकी सीखते थे। पाठ में उनके जूनियर राष्ट्रीय हॉकी से सीनियर टीम और एशियन कप में चयन होने का सफर है। जिंदगी में छोटी–छोटी चीजों के लिए संघर्ष करने के कारण वे तुनक मिजाज हो गए परंतु वे भावुक भी बहुत हैं। उन्होंने अपने जीवन का खास क्षण राष्ट्रपति से मिलना बताया।

पाठ 19 – आश्रम का अनुमानित व्य्य

यह पाठ मोहनदास करमचंद गांधी द्वारा लिखित है। गांधी जी दक्षिण अफ्रीका से लौटकर अहमदाबाद के एक आश्रम में स्थापित थे। इस पाठ में उसी आश्रम के व्यय के अनुमान का विवरण है। पाठ में आश्रम में रहने वाले लोग, अतिथि, मकान की ज़मीन, रसोईघर, पुस्तक रखने की जगह, खेती की ज़मीन, 50 लोगों के खाने का खर्च 6 हज़ार तय हुआ। गांधी जी ने कहा की यदि अहमदाबाद को इसके ऊपर का खर्च उठाना चाहिए और यदि अहमदाबाद इस खर्च के लिए तैयार नहीं है तो वे खर्च का इंतजाम कर सकते है।

पाठ 20– विप्लव गायन

यह कविता कवि बालकृष्ण शर्मा ने रची है। इस कविता के माध्यम से वे लोगों को समाज की बुराईयो और पाखंड रस्तो को छोड़ प्रगति और अच्छे समाज की और बढ़ने को कहते हैं। कविता जड़ता के विरुद्ध, विकास और प्रगति को प्रेरित करती है। कवि इससे परिवर्तन की गुहार लगा रहे हैं। कवि विश्वास करते हैं कि पुराने कुविचारों को अंत कर, हम नए और स्वच्छ समाज को प्रेरित कर सकें। वे ऐसा गीत गाने की इच्छा कर रहे है जिससे क्रांति आए जिससे बदलाव के गीत शुरू हो जाए और उसके वेग से सामाजिक कुरीतियां समाप्त हो जाए। कवि के इस कविता से समाज में एक महान बदलाव लाने का संदेश दिया है।

NCERT Books For Class 7 Hindi: बाल महाभारत

पाठ-1 महाभारत कथा

बाल महाभारत भारत के पौराणिक ग्रंथ महाभारत’ का संक्षिप्त रूप है। यह कथा हमें हमारे इतिहास से जोड़ती है। महर्षि पराशर के पुत्र वेदव्यास जी ने इस कथा की रचना की है। ये कथा हमें राजनीति, संस्कृति, धर्म–अधर्म, सत्य–असत्य, न्याय–अन्याय जैसे विषय पर सोचने को मजबूर करती है।।कृष्ण का गीता ज्ञान इसी कथा से मिलता है। यह कथा हमारे महान इतिहास का संक्षिप्त वर्णन है।

पाठ-2 देवव्रत

नदी के तट पर गंगा को देखकर राजा शांतनु उन पर मोहित हो जाते हैं और उनसे विवाह करने का प्रस्ताव रखते हैं। वे गंगा की खूबसूरती में इतने खो जाते हैं कि उसकी सारी शर्तें मान लेते हैं और जब गंगा अपने आठवें पुत्र को हमेशा की तरह नदी में बहाने जाती है तो वे गंगा को रोक लेते हैं, लेकिन शर्त के मुताबिक गंगा पुत्र को नहीं बहाती और कुछ दिन उसका पालन करने के बाद राजा को सौंप देती हैं।

पाठ-3 भीष्म-प्रतिज्ञा

4 साल बाद यमुना नदी के तट पर राजा शांतनु राजकुमारी सत्यवती को देखकर उन के रूप में खो जाते हैं और सत्यवती से विवाह का प्रस्ताव रखते हैं। परंतु सत्यवती कहती हैं कि वे अपने पुत्र को ही उत्तराधिकारी बनाएगी। राजा इस बात पर मना कर देते हैं और दुखी होकर महल में रहने लगते हैं। राजा को इस तरह देख कर गंगापुत्र भीष्म यह प्रतिज्ञा करते हैं कि वे जीवन भर विवाह नहीं करेंगे और ना ही हस्तिनापुर के सिंहासन पर बैठेंगे।

पाठ-4 अंबा और भीष्म

सत्यवती के छोटे पुत्र विचित्रवीर्य के विवाह के लिए भीष्म ने काशीराज की कन्याओं के स्वयंवर में अपना नाम दिया उनके नाम देने पर वहाँ पर सभी राजा उनके ब्रह्मचर्य पर हंसने लगे। इस बात पर भीष्म तीनों कन्याओं को स्वयंवर से बलपूर्वक उठा लाए और परिस्थितयाँ ऐसी बदलीं कि अंबा की किसी से भी शादी नहीं हो पाई और उसने इसका जिम्मेदार पितामह भीष्म को समझा। अपना बदला लेने के लिए उसने स्त्री रूप छोड़कर पुरुष रूप अपनाने का प्रण लिया और अगले जन्म में उनका नाम शिखंडी रखा गया।

पाठ-5 विदुर

विचित्रवीर्य की रानी अंबालिका की दासी ने धर्मदेव को जन्म दिया जिन्हें बाद में विदुर के नाम से जाना गया। वह बहुत ही बुद्धिमान थे, इसलिए भीष्म ने उन्हें धृतराष्ट्र का प्रधानमंत्री बना दिया। चौसर के खेल के लिए विदुर ने दुर्योधन को बहुत समझाया कि इस तरह का खेल भी ना खेलें परंतु दुर्योधन नहीं माना। इसके बाद उन्होंने युधिष्ठिर से खेल में ना आने का आग्रह किया ,परंतु युधिष्ठिर क्षत्रिय धर्म निभाने के कारण उन्होंने विदुर को विनम्रतापूर्वक मना कर दिया।

पाठ-6 कुंती

कुंती, श्री कृष्ण की बुआ थीं उनका विवाह हस्तिनापुर के राजा पाण्डु से हुआ था परंतु उन्होंने पांडू को कर्ण के बारे में नहीं बताया था। एक बार राजा पांडु अपनी दोनों रानियां कुंती व माद्री के साथ वन में गए ,वहाँ भूलवश उन्हें श्राप मिल गया, जिस कारण वे राज्य छोड़कर वन में रहने लगे। वन में दुर्वासा ऋषि की कृपा से कुंती व माद्री ने पांच पुत्रों को जन्म दिया जो बाद में पांडव के नाम से जाने गए। परंतु श्राप के कारण राजा पांडु की मृत्यु हो गई और कुंती पुत्रों के साथ राजमहल आ गईं।

पाठ-7 भीम

राज महल में पांडव धृतराष्ट्र के पुत्रों कौरवों के साथ रहते थे परंतु दुर्योधन व अन्य कौरव पांडवों को परेशान करते रहते थे। एक बार दुर्योधन ने भीम को जहरीली खीर खिलाकर उसके हाथ पैर बांधकर नदी में फेंक दिया और दुर्योधन ने सोचा कि अब भीम वापस नहीं आएगा, परंतु विधाता ने भीम को बचा लिया और भीम को देखकर दुर्योधन बड़ा ही आश्चर्यचकित हो गया। भीम ने उत्तेजित होकर अपना सारा हाल पांडवों को बताया ,परंतु युधिष्ठिर के समझाने पर भीम शांत हो गये।

पाठ-8 कर्ण

पांडव और कौरव जब शिक्षा प्राप्त करके गुरुकुल से लौटे तो उनके कौशल को दिखाने के लिए एक समारोह आयोजित हुआ। जिसमें पांडु पुत्र अर्जुन अव्वल रहे, परंतु कर्ण ने अचानक आकर अर्जुन से द्वंद युद्ध की इच्छा जताई। सूत पुत्र होने के कारण सब उस पर हंसने लगे, दुर्योधन ने उसी समय उसे अंग देश का राज्य दे दिया। कुंती कर्ण को देखकर पहचान गईं कि ये उनका पुत्र है। कहानी में आगे जाकर कुरुक्षेत्र में अर्जुन द्वारा ही कर्ण का वध किया गया था।

पाठ-9 द्रोणाचार्य

द्रोणाचार्य महर्षि दुर्वासा के पुत्र थे। उन्होंने पांडवों और कौरवों को धनुर्विद्या सिखाई थी। द्रोणाचार्य ने अपने मित्र राजा द्रुपद द्वारा अपने अपमान का बदला लेने के लिए अर्जुन को उन्हें उनकी सेना को बंदी बनाने के लिए भेजा, अर्जुन ने ठीक वैसा ही किया, परंतु बाद में द्रोणाचार्य ने द्रौपद को सम्मान सहित छोड़ दिया। अपमान से दुखी होकर राजा द्रुपद ने यज्ञ विधि द्वारा 1 पुत्र या पुत्री को उत्पन्न कराया। कुरुक्षेत्र में द्रोणाचार्य का वध राजा द्रुपद के पुत्र धृष्टद्युम्न द्वारा ही हुआ था।

पाठ-10 लाख का घर

दुर्योधन की भीम से जलन बढ़ती जा रही थी और हस्तिनापुर में पांडवों की लोकप्रियता से उसे युधिष्ठिर के राजा बनने का भी डर था। इस कारण उसने अपने पिता धृतराष्ट्र के काफी कान भरे। बाद में अपने मामा शकुनि के साथ मिलकर पांडवों को जिंदा जलाने की एक योजना बनाई। इसके लिए उन्होंने लाख, तेल, घी, मोम आदि से निर्मित एक महल का निर्माण कराया, जो आसानी से आग पकड़ सके और बाद में उन्होंने पांडवों को लाख से बने हुए घर में भेज दिया।

पाठ-11 पांडवों की रक्षा

इस पाठ में पांडव कुंती के साथ हस्तिनापुर छोड़कर लाख के घर में रहने लगते हैं और एक दिन दुर्योधन की चाल से बचकर लाख के जलते हुए घर से बाहर आसानी से निकल आते हैं। इस घटना के बाद सभी लोग जंगल में रहने लगते हैं। लाख के घर के जल जाने से हस्तिनापुर में सभी को लगता है कि कुंती व पांडव अब इस दुनिया में नहीं रहे, परंतु पांडव और कुंती जंगल को राक्षसों से मुक्त करके वहाँ शांति से रहने लगते हैं।

पाठ-12 द्रौपदी स्वयंवर

द्रौपदी के स्वयंवर में अनेक राजा स्वयंवर की शर्त (मछली की आंख पर निशाना लगाना) को पूरा नहीं कर पाये। अंत में ब्राह्मण वेषधारी अर्जुन ने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा कर मछली को भेद दिया और स्वयंवर में द्रौपदी को जीत लिया। बाद में राजा द्रुपद को पता चल गया कि ब्राह्मण भेष में पांडु पुत्र अर्जुन हैं और अंत में माता कुंती और राजा द्रुपद की आज्ञा से द्रौपदी का विवाह पाँचो पांडव के साथ हो गया।

पाठ-13 इंद्रप्रस्थ

जब हस्तिनापुर में द्रौपदी के स्वयंवर की बात पता चली तो धृतराष्ट्र व विदुर बहुत खुश हुए और धृतराष्ट्र ने विदुर से कहा की वे पांडव ,कुंती ,द्रौपदी को हस्तिनापुर वापस ले आएं। विदुर ने उनकी बात मान ली और वे राजा द्रुपद के यहाँ गए। वहाँ उन्होंने पांडवों, कुंती ,द्रौपदी को अपने साथ चलने को कहा। सभी लोग हस्तिनापुर आ गए और धृतराष्ट्र ने पांडवों को नया राज्य सौंप दिया, जिसका नाम उन्होंने इंद्रप्रस्थ रखा।

पाठ-14 जरासंध

पांडव इंद्रप्रस्थ में खुशी-खुशी रह रहे थे। वहाँ उन्होंने राजसूय यज्ञ करने की योजना बनाई परंतु राजसूय यज्ञ वही कर सकता है जो सारे राजाओं में पूज्यनीय हो। इसके लिए उन्होंने श्री कृष्ण से सलाह ली और श्री कृष्ण के सानिध्य में रहकर अर्जुन व भीम ने मगध के राजा जरासंध का वध किया और राजसूय यज्ञ को संपन्न किया। अंत में युधिष्ठिर को सम्राट की पदवी प्राप्त हुई।

पाठ-15 शकुनि का प्रवेश

युधिष्ठिर ने प्रतिज्ञा ली कि वे अब से 13 वर्ष तक किसी से भी बुरा भला नहीं कहेंगे। इधर हस्तिनापुर में दुर्योधन पांडवों की ख्याति से जल रहा था, उसने अपने मामा शकुनि के साथ पांडवों को अपने जाल में फंसाने की एक योजना बनाई, जिसमें वे चौसर के खेल का आयोजन करेंगे। शुरुआत में धृतराष्ट्र इस बात पर नहीं माने परंतु पुत्र मोह में आकर उन्होंने इस बात की हामी भर दी और विदुर को पांडवों को सूचना देने को कहा।

पाठ-16 चौसर का खेल व द्रौपदी की व्यथा

यह पाठ संपूर्ण महाभारत का प्रमुख केंद्र है। इस पाठ के अंतर्गत बताया जाता है कि किस तरह युधिष्ठिर, दुर्योधन के चौसर के खेल में अपना सब कुछ गवा देते हैं और बाद में द्रौपदी का चीर हरण व कृष्ण द्वारा उनकी रक्षा होती है। अंत में पांडव अपना सब कुछ हार कर द्रौपदी के साथ वनवास तथा अज्ञातवास के लिए चले जाते हैं।

पाठ-17 धृतराष्ट्र की चिंता

पांडवों को वनवास से धृतराष्ट्र बहुत चिंता में हो जाते हैं। उन्हें अपने किये पर बहुत पछतावा होता है। उधर श्री कृष्ण को जब पांडवों के वनवास की सूचना मिलती है तो वे वन में पहुँच जाते हैं और पांडवों से मिलने के बाद श्री कृष्ण अर्जुन की पत्नी सुभद्रा व पुत्र अभिमन्यु को अपने साथ द्वारका लाते हैं। धृष्टद्युम्न द्रौपदी के पुत्रों को अपने साथ ले जाते हैं।

पाठ-18 भीम और हनुमान

एक बार भीम वन में द्रौपदी के लिए फूल लेने गए, वहां उन्हें एक वानर मिला। भीम बहुत बलशाली थे लेकिन वे उस वानर की पूँछ को हिला भी नहीं पाए। अंत में उन्हें पता चला कि वे वानर श्रेष्ठ हनुमान हैं। हनुमान जी ने भीम को आशीर्वाद दिया कि वे युद्ध में अर्जुन के रथ के ध्वज पर विराजमान रहेंगे और जीत पांडवों की होगी।

पाठ-19 द्वेष करनेवाले का जी नहीं भरता

वनवास के समय दुर्योधन ने पांडवों की राह में कई मुश्किलें खड़ी की परंतु पांडवों ने उन सभी मुश्किलों को हंसकर पार कर लिया ।एक बार दुर्वासा ऋषि पांडवों के आश्रम में आए, उनके घर में खाने के लिए कुछ भी नहीं था, द्रौपदी बहुत चिंता में पड़ गई थी। अब वे ऋषि को क्या खिलाएं ये सोच रही थीं, परंतु श्री कृष्ण ने एक अन्न का दाना देकर द्रौपदी को इस मुश्किल से पार करा दिया।

पाठ-20 मायावी सरोवर

वनवास के दौरान एक बार पांडवों को बहुत तेज प्यास लगी। युधिष्ठिर ने नकुल से कहा कि कहीं से पानी लाया जाए, नकुल ने पेड़ पर चढ़कर देखा तो उसे पास ही एक जलाशय दिखाई दिया, नकुल पानी लेने के लिए चला गया परंतु वह नहीं लौटा ।उसके बाद सहदेव ,अर्जुन और भीम भी गए परंतु कोई नहीं लौटा। युधिष्ठिर की चिंता और अधिक बढ़ गई और अपने भाइयों की तलाश में वे निकले।

पाठ-21 यक्ष-प्रश्न

जब एक भी भाई पानी लेकर नहीं लौटे तो युधिष्ठिर स्वयं ही भाइयों की खोज में निकल गए। वहाँ उन्होंने अपने भाइयों को जलाशय के पास मूर्छित देखा। वे आश्चर्य में पड़ गए कि ऐसा किसने किया, अंत में जलाशय के मालिक यक्ष ने युधिष्ठिर से कई प्रश्न पूछे। युधिष्ठिर ने सभी प्रश्नों का सही उत्तर दिया, यक्ष ने प्रसन्न होकर युधिष्ठिर के सभी भाइयों को जीवित कर दिया।

पाठ-22 अज्ञातवास

पांडव और द्रौपदी अपना-अपना वेश बदलकर मत्स्य देश में राजा विराट के यहां नौकरी करने लगे। एक बार दुर्योधन ने विराटनगर पर आक्रमण कर दिया। धीरे-धीरे राजा के सभी सिपाही घायल होते जा रहे थे, राजा को बड़ी चिंता होगी तब अर्जुन अपने स्त्री रूप में ही राजा के पुत्र उत्तर के साथ रणभूमि में युद्ध के लिए चले गए।

पाठ-23 प्रतिज्ञा-पूर्ति

द्रोणाचार्य अर्जुन को पहचान लेते हैं और वे कहते हैं कि यह स्त्री रूप में अर्जुन ही है। कर्ण और दुर्योधन बहुत खुश होते हैं कि अब पांडवों को 12 वर्ष का वनवास फिर से करना पड़ेगा परंतु द्रोणाचार्य कहते हैं कि नहीं उनकी प्रतिज्ञा की अवधि पूरी हो चुकी है। इसके बाद युद्ध में अर्जुन के सामने पूरी कौरव सेना पराजित हो जाती है ,विराट नगर की विजय होती है।

पाठ-24 विराट का भ्रम

राजा विराट को जब यह पता चलता है कि उनका पुत्र उत्तर, युद्ध में गया है तो उन्हें बहुत चिंता होती है। परंतु जब उन्हें यह पता चलता है कि उत्तर ने युद्ध जीत लिया है तो फिर बड़े प्रसन्न होते हैं। अंत में उत्तर अपने पिता को बताता है कि युद्ध उसने विजय नहीं किया है बल्कि किसी और ने किया है। इसके बाद अर्जुन राजा विराट को व पूरी सभा को अपना परिचय देते हैं। सभी पांडवों का सही परिचय पाकर बहुत प्रसन्न होते हैं।

पाठ-25 मंत्रणा

अभिमन्यु और उत्तरा के विवाह के बाद सभी राजाओं में युद्ध के लिए बैठक हुई, और दूत को हस्तिनापुर भेजा गया। सभी राजा अपने-अपने राज्य में लौट गए।अर्जुन श्री कृष्ण के पास द्वारका गए और उसी दिन दुर्योधन भी द्वारका पहुंच गया है। अंत में यह निश्चित हुआ कि श्री कृष्ण की पूरी सेना कौरवों के साथ होगी और श्री कृष्ण सारथी बनकर अर्जुन के साथ होंगे।

पाठ-26 राजदूत संजय

युधिष्ठिर ने पांचाल राज के पुरोहित को संधि के लिए हस्तिनापुर भेजा। धृतराष्ट्र को बात अच्छी लगी और उन्होंने संजय को पांडवों के पास भेजते हुए कहा कि वे संधि के लिए तैयार हैं। युधिष्ठिर ने संजय से कहा कि उन्हें व उनके भाइयों को सिर्फ 5 गांव दे दिए जाए उसमें भी वे खुश हैं। जब संजय ने यह बात हस्तिनापुर में बतायी, तो दुर्योधन इस बात पर भी राजी न हुआ।

पाठ-27 शान्तिदूत श्रीकृष्ण

पांडवों की ओर से श्री कृष्ण शांति दूत बनकर गए और वहाँ उन्होंने सभा में पांडवों को आधा राज्य देकर संधि करने की बात कही। परंतु दुर्योधन नहीं माना इसके बाद कुंती गंगा किनारे कर्ण के पास गई और कर्ण को सारा सच बता दिया, और कहा कि वह अपनी सगे भाइयों के खिलाफ ना लड़े। परंतु कर्ण ने विनम्रता पूर्वक उन्हें बताया कि वे ऐसा नहीं कर सकते। लेकिन उन्होंने वचन दिया कि वे अर्जुन के अलावा किसी अन्य पांडव को क्षति नहीं पहुंचाएंगे।

पाठ-28 पांडवों और कौरवों के सेनापति

युद्ध की तैयारी पूरी हो चुकी थी, पांडवों ने अपनी ओर से द्रौपदी के भाई वीर धृष्टद्युम्न को सेनापति बनाया तो वहीं हस्तिनापुर की ओर से पितामह भीष्म को सेनानायक बनाया गया। सभी वीर कुरुक्षेत्र में युद्ध के लिए तैयार थे, अचानक ही युधिष्ठिर व सभी पांडव श्री कृष्ण के साथ बिना हथियार के कौरवों की सेना में घुस गए और अपने बड़ों को प्रणाम करके उनका आशीर्वाद लिया, इसके बाद युद्ध प्रारंभ हुआ।

पाठ-29 पहला, दूसरा और तीसरा दिन

पहला दिन पांडवों के लिए बुरा साबित हुआ और दुर्योधन अत्यंत खुश हुआ। दूसरा दिन पांडवों के लिए आनंद से भरा रहा। अर्जुन के बाणों से कौरवों की सेना में तबाही मच गई, इसके बाद तीसरा दिन भी पांडवों के पक्ष में जा रहा था किंतु अचानक पितामह भीष्म के बाणों से पांडवों की सेना में तबाही छा गई और कुछ बाण श्री कृष्ण व अर्जुन को भी लगे ,श्री कृष्ण उत्तेजित हो गए और रथ का पहिया उठाकर पितामह भीष्म की और दौड़े परंतु कुछ समय बाद में वे शांत भी हो गए और इसके बाद अर्जुन ने अत्यंत शौर्य का परिचय देना शुरू किया।

पाठ-30 चौथा, पाँचवाँ व छठा दिन

चौथे दिन के युद्ध में भीमसेन ने दुर्योधन के 9 भाइयों को मारा और घटोत्कच ने भी भीषण युद्ध किया। दुर्योधन अपने शिविर में दुख में बैठा रहा। पांचवें दिन का युद्ध अत्यंत ही भीषण रहा और छठे दिन तो सुबह से ही दोनों ही सेनाओं में भयानक युद्ध हुआ ,जिसमें दुर्योधन भी घायल हो गया। सूर्यास्त के बाद युधिष्ठिर अत्यंत ही प्रसन्न हुए, उनकी खुशी का ठिकाना ना रहा।

पाठ-31 सातवाँ, आठवाँ और नवां दिन

सातवें दिन के युद्ध में सभी योद्धा अपने दुश्मन से साहस के साथ लड़ रहे थे। जबकि आठवें दिन में भीम ने धृतराष्ट्र के आठ पुत्रों को मार दिया, लेकिन इस दिन अर्जुन ने अपने पुत्र इरावान को भी खो दिया था। नवें दिन के युद्ध में पितामह भीष्म की हुंकार से पांडवों के कई सैनिक घायल हुए और कई ने प्राण त्याग दिए। अर्जुन और श्री कृष्ण यह सब देखकर अत्यंत दुखी हुए।

पाठ-32 भीष्म शर-शय्या पर

दसवें दिन के युद्ध में पांडवों ने शिखंडी को आगे किया। शिखंडी की आड़ में अर्जुन ने पितामह भीष्म के शरीर को बाणों से भेद दिया। भीष्म रथ से नीचे गिर पड़े परंतु उनके शरीर को जमीन ने नहीं छुआ। क्योंकि बाण उनके शरीर के एक और से निकलकर दूसरी ओर पहुंच गए थे। इस प्रकार पितामह भीष्म शर-शय्या पर सूर्य के उत्तरायण में होने का इंतजार करने लगे। इसके बाद द्रोणाचार्य कौरवों के सेनापति नियुक्त हुये।

पाठ-33 बारहवाँ दिन

द्रोणाचार्य की युधिष्ठिर को जीवित पकड़ने की योजना असफल रही। इसके बाद अर्जुन ने भगदत्त व गांधारनरेश शकुनि के दोनों भाइयों को युद्ध में परास्त करके मौत के हवाले कर दिया। अपने भाइयों को मरता देख शकुनि ने भयंकर युद्ध लड़ा परंतु हार गया। युद्ध भूमि में खून की नदियां बहने लगी और इसी तरह बारहवें दिन का युद्ध समाप्त हुआ और सभी अपने-अपने डेरे पर चले गए।

पाठ-34 अभिमन्यु

तेरहवें दिन अर्जुन दक्षिण की ओर लड़ने चला गया। अभिमन्यु युधिष्ठिर की आज्ञा से कौरवों द्वारा बनाए हुए चक्रव्यूह को तोड़ते हुए आगे बढ़ गया उसे चक्रव्यूह में अंदर जाना पता था परंतु उससे निकलना नहीं पता था। वह वीर योद्धा अकेला ही द्रोणाचार्य ,दुर्योधन ,दुशासन ,कर्ण आदि से लड़ता रहा व अंत में वीरगति को प्राप्त हो गया। अभिमन्यु की मृत्यु से पांडव सेना शोक में डूब गई व अर्जुन ने जयद्रथ का वध करने की प्रतिज्ञा ली।

पाठ-35 युधिष्ठिर की चिंता व कामना

धृष्टद्युम्न व सात्यकि द्रोणाचार्य के साथ भीषण युद्ध कर रहे थे ,वहीं अर्जुन भी अपनी प्रतिज्ञा पूर्ति के लिए जयद्रथ से लड़ रहा था। युधिष्ठिर को अर्जुन की चिंता हुई उन्होंने सात्यकि से कहा कि वह अर्जुन के पास जाएं परंतु वे नहीं जा सके, बाद में भीमसेन अर्जुन के पास पहुंच गए और अपने शंखनाद से अर्जुन की कुशलता का संदेश युधिष्ठिर को दिया। युधिष्ठिर ने मन ही मन अर्जुन को आशीर्वाद दिया।

पाठ-36 भूरिश्रवा, जयद्रथ और आचार्य द्रोण का अंत

अर्जुन ने जयद्रथ से युद्ध करते-करते बीच में ही भूरिश्रवा के हाथ को तलवार से काट डाला जब वह सात्यकि को तलवार मारना चाहता था। इसके बाद अर्जुन ने जयद्रथ का सिर उसके शरीर से अलग करके उसके पिता की गोद में पहुंचा दिया, सात्यकि ने भी भूरिश्रवा का अंत कर दिया। पांडवों ने छल का साथ लेते हुए द्रोणाचार्य का धृष्टद्युम्न द्वारा वध करा दिया,परन्तु पांडवों ने घटोत्कच को खो भी दिया।

पाठ-37 कर्ण और दुर्योधन भी मारे गए

आचार्य द्रोण की मृत्यु के बाद कर्ण कौरव सेना का सेनापति नियुक्त हुआ। परंतु यह दिन कौरव सेना के लिए काल बनकर आया था। इस दिन कौरव सेना के कई महान वीरों ने अपने प्राण त्याग दिये। इनमें अर्जुन द्वारा कर्ण का वध हुआ, महाराज शल्य को युधिष्ठिर ने, शकुनी को नकुल ने व दुशासन और दुर्योधन को भीम ने ही युद्ध भूमि में मार गिराया।

पाठ-38 अश्वत्थामा

अश्वत्थामा ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए आधी रात को कृपाचार्य वकृत वर्मा के साथ मिलकर पांडवों के शिवरों में आग लगा दी। उसने सोते हुए द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न व उसके पुत्रों को मौत के घाट उतार दिया। द्रौपदी के विलाप की सीमा न रही। अंत में भीम ने अश्वत्थामा को हरा दिया। कुरु वंश समाप्त हो चुका था परंतु उत्तरा के गर्भ से परीक्षित का जन्म हुआ, यही अभिमन्यु की संतान कुरु वंश का वंशज बना।

पाठ-39 युधिष्ठिर की वेदना

युद्ध भूमि से हस्तिनापुर लौटने के बाद सभी पांडव धृतराष्ट्र गांधारी से मिले परन्तु युधिष्ठिर को बहुत ही आत्मग्लानि महसूस हुई कि उन्होंने अपने ही भाइयों को मार दिया। लेकिन बाद में पितामह भीष्म के पास जाने पर युधिष्ठिर को उचित मार्गदर्शन मिला व धृतराष्ट्र ने भी युधिष्ठिर से कहा कि अब वह न्यायोचित तरीके से राज्य का कल्याण करें इसी में सबकी भलाई है।

पाठ-40 पांडवों का धृतराष्ट्र के प्रति व्यवहार

युधिष्ठिर ने अपने भाइयों को आदेश दिया कि सभी लोग महाराज धृतराष्ट्र व माता गांधारी के साथ उचित व्यवहार करेंगे। चारों भाई अपने बड़े भाई की आज्ञा का पालन करने लगे, उन्होंने धृतराष्ट्र का पूर्ण रूप से आदर किया परंतु धृतराष्ट्र को उन सब सुखों से भी शांति का अनुभव ना होता। अंत में धृतराष्ट्र व गांधारी वन में तपस्या के लिए चले गए, कुंती व संजय भी उनके साथ गए।

पाठ-41 श्रीकृष्ण और युधिष्ठिर

श्री कृष्ण ने 36 बरस तक द्वारका में राज्य किया ,परंतु आपसी फूट से यदुवंश का अंत हो गया और श्री कृष्ण वन में चले गए। वहाँ एक शिकारी द्वारा तीर लगने से उनका देहांत हो गया। इस समाचार को सुनकर पांडवों को बहुत दुख हुआ व पांडव द्रौपदी के साथ परीक्षित को राजगद्दी देकर वन में साधना के लिए चले गए और परीक्षित के वंशज ने हस्तिनापुर में न्यायपूर्वक कई वर्षों तक राज्य किया।

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