Call Now
1800-102-2727प्रस्तुत कविता में कवि कहते हैं कि ये कठपुतलियां बरसों से धागों में बंधी हुई हैं और इन धागों की डोर किसी दूसरे के हाथों में होती है। इस चीज़ से परेशान होकर कठपुतलियों के मन में स्वतंत्रता का भाव उत्पन्न होता है। इस बंधन से क्रोध में आकर कठपुतलियां यह सोचती हैं कि इन धागों ने उसे क्यों पकड़ा हुआ है ? वो सोचती हैं कि इन धागों को तोड़ देना चाहिए , कठपुतली स्वतंत्र होना चाहती है, वो आत्मनिर्भर बनना चाहती है, उसे अपनी इच्छा अनुसार कार्य करना है।
कवि आगे कहते हैं कि पहली कठपुतली की मनोदशा सुन दूसरी कठपुतलियों के मन में भी यह भाव जाग्रत होने लगता है और वे भी आजाद होना, स्वतंत्र होना, एवं इस जीवन में मुक्त होना चाहती हैं। सभी कठपुतलियां अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए तैयार हो जाती है लेकिन सारी कठपुतलियों के तैयार होने पर पहली कठपुतली फिर से सोच में पड़ जाती है। वो सोचती है ये धागे ही हैं जो उसे कार्यान्वयन रखते हैं अगर यह इनका साथ छोड़ देगी तो वह कैसे चल पाएगी। कठपुतली के मन में भाव आता है कि उसे सोच-समझकर ही कोई फैसला लेना चाहिए क्योंकि वो आजाद हो जायेंगी, स्वतंत्र हो जायेंगी लेकिन स्वतंत्रता को कैसे बनाए रखेंगी, क्योंकि धागे और कठपुतलियाँ एक ही सिक्के के दो पहलू हैं जो की अलग-अलग नहीं रह सकते।
अंततः पहली कठपुतली धागे से अपने जुड़े इस बंधन को अनंत जीवन के लिए स्वीकार कर लेती है।
Talk to our expert