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1800-102-2727प्रस्तुत कहानी में लेखक ने एक फेरीवाले का वर्णन किया है । फेरीवाला पहली बार अपने जीवन में खिलौने बेचने जाता है और बहुत ही विचित्र ढंग की आवाज निकालते हुए गाकर कहता है , “बच्चों को बहलाने वाला खिलौना वाला” उसकी यह आवाज सुनकर सभी बच्चे अपने घर से बाहर निकल जाते हैं। छोटे बच्चों की माँ छत पर जाकर उसे देखने लगती है और बच्चे उसे झुंड बनाकर घेर लेते हैं। अपने खिलौने की पोटली को खोलकर वह बच्चों को खिलौने दिखाता है, बच्चे उन्हें अपने नन्हें हाथों से खेलते हैं और उससे उन खिलौनों का दाम पूछते हैं। उस गांव में एक निवासी होते हैं राय विजय बहादुर, उनका बच्चा चुन्नू भी खिलौने लेता है। उसकी माँ रोहिणी पूछती है कि इन खिलौनों के कितने पैसे हुए? तो बच्चे बोलते हैं कि दो पैसे यह सुनकर उनकी माँ को आश्चर्य होता है कि इतने सस्ते में कोई खिलौने कैसे दे गया है? यह बात किसी तरह समय के साथ गुजर जाती है।
छह महीने बाद उसी नगर में एक मुरली वाला आता है। सभी लोग उसके बारे में बात करते हैं कि वह व्यक्ति बहुत अच्छी मुरली बजाता है और बहुत सस्ते में मुरली बेचता भी है। मुरलीवाला भी अपनी मधुर आवाज में गलियों में गाता हुआ फिरता “बच्चों को बहलाने वाला मुरलीवाला”। ये सुनकर रोहिणी अपने पति को मुरली खरीदने के लिए मुरली वाले को बुलाकर लाने के कहती है। मुरलीवाले से मुरली लेकर विजय बाबू भीतर चले जाते हैं और मुरलीवाला बाहर रहकर उन बच्चों को बड़े प्रेम से मुरली बेच रहा होता है। जब रोहिणी उन बच्चों के साथ मुरली वाले की बातचीत को सुनती है तो वो समझ जाती है कि मुरलीवाला एक भला व्यक्ति है।
कुछ दिन पश्चात, लगभग आठ महीने बाद सर्दी के दिनों में मिठाई वाला गली में आता है और आवाज देता है कि “बच्चों को बहलाने वाला मिठाई वाला” रोहिणी अपने घर से जब ये आवाज़ सुनती है तो वह नीचे आ जाती है। रोहिणी अपनी दादी से मिठाई वाले को बुलाकर लाने के लिए कहती है मिठाईवाला रोहिणी के घर आकर मिठाइयों की विशेषता दादी को बताने लगता है और कहता है कि वह चार पैसे की सिर्फ 16 मिठाइयां देता है। दादी उसे 25 मिठाइयां देने के लिए कहती है किंतु वो उनकी बात पर तैयार नहीं होता। रोहिणी अपनी दादी से कहती है की वो चार पैसे में ही मिठाई ले लें। फिर दादी मिठाई वाले से पूछती हैं क्या तुम इस शहर में पहली बार आए हो? मिठाईवाला उनकी बात को जवाब देता है की वो पहले भी इस नगर में खिलौने और मुरली बेच चुका है।
पूछने पर मिठाईवाला अपने बारे में बताता है कि वह जिस नगर में रहता था, वहाँ का वो प्रतिष्ठित आदमी था। धन-धान्य स्त्री बच्चे सब कुछ था, लेकिन उसका भाग्य अच्छा न होने के कारण अब कोई भी उसके साथ नहीं था। उसका जीवन बहुत कठिन हो गया था इसलिए वह खिलौने और मिठाइयों के बहाने अपने बच्चों की खोज में निकलता है। उसे यह आशा है कि उसके बच्चों ने कहीं ना कहीं किसी रूप में जन्म अवश्य लिया होगा, वो पैसों के लिए नहीं अपने बच्चों की याद में यह सारे व्यवसाय कर रहा होता है। यह कहानी सुनाते-सुनाते मिठाईवाला अपने बीते दिनों की यादों में खोकर गुम हो जाता है। उसी वक्त रोहिणी के बच्चे भी आ जाते हैं, मिठाईवाला उन्हें मिठाइयां देता है लेकिन जब रोहिणी उसे इन मिठाइयों का दाम देती है तो वह मना कर देता है। वो कहता है कि वो इस बार पैसे नहीं ले सकता और अपनी पेटी फिर से उठाता है और अपने गीत को गाते-गाते निकल जाता है।
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