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NCERT Solutions for Class 7 हिंदी वसंत पाठ 2:दादी माँ

लेखक शहर में अपना जीवन व्यतीत कर रहे होते हैं। यदा-कदा उन्हें अपने गांव के घर की याद आती रहती है विशेषकर अपनी दादी मां की। लेखक को बचपन से ही अपनी दादी माँ से गहरा लगाव था और आज उन्हें अपनी दादी माँ की याद अत्यधिक आ रही थी। क्योंकि उन्हें अपनी दादी माँ की मृत्यु की खबर सुनने को मिली और उन्हें उनकी दादी के साथ बिताए हुए हर लम्हों की याद आने लगी। लेखक आगे अपने बीते हुए दिनों को याद करते हैं, जब क्वांर का समय चल रहा होता था और चारों ओर पानी भरा रहता था और मिट्टी की एक अजीब-सी महक हवा में फैली रहती थी।

इसी मौसम में बच्चे तालाब में कूद-कूदकर झाग भरे पानी में नहाते थे और इसी पानी से लेखक कई बार बीमार पड़ गए थे, तब उनकी दादी ने ही दिन रात उनकी सेवा की थी। उनकी दादी माँ उनके हाथ-पैर छूकर ही उनके बुखार का अनुमान लगा लिया करती थी। इसके साथ ही दादी माँ उनकी बीमारी दूर करने के लिए विशेष प्रकार का भोजन बनवाती थी, उन्हें हर प्रकार की दवाओं के नाम याद रहते थे। लेखक ही नहीं अपितु गांव में कोई और भी बीमार होता था तो वह उनकी दादी के पास पहुँच जाता था। लेखक आगे अपने बड़े भाई की शादी के दिन को याद करते हैं जब उनकी दादी माँ का उत्साह एक अनूठे रूप से उन्हें देखने को मिला वैसे तो वो किसी काम में इतनी तत्पर नहीं थीं, उनकी उम्र की वजह से, लेकिन उनकी अनुपस्थिति के बिना भी कोई काम संभव नहीं होता था।

गांव में रामी की चाची ने उनकी दादी माँ से उधार ले रखा था और वह दादी माँ से मिन्नतें कर रही थीं कि वे उनका पैसा नहीं लौटा सकेंगी क्योंकि उनकी बेटी की शादी थी। पर दादी माँ ने अपना कठोर रूप दिखाया और उनसे कहा कि उन्हें किसी भी प्रकार से यह पैसा वापस करना होगा। लेखक को अपनी दादी माँ का यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा और वह उनसे नाराज हो गए। लेकिन कुछ दिनों बाद लेखक को यह ज्ञात हुआ कि उनकी दादी माँ ने रामी चाची का सारा कर्जा माफ़ कर दिया था और अपनी तरफ से भी कुछ रुपये देकर उनकी बेटी की शादी में सहायता की थी। इन चीजों से लेखक को अपनी दादी माँ के कोमल स्वभाव और कठोर प्रशासनिक प्रवृत्ति का अंदाजा हुआ था।

लेखक अपनी दादी माँ के बहुत लाडला थे और उन्हें हमेशा लगता था कि यदि वह कोई गलती करते भी हैं तो उनकी दादी माँ हमेशा उनका साथ देगीं और उन्हें माफ़ कर देंगी। सब कुछ सही चल रहा था जब लेखक के दादाजी की मृत्यु हुई, उस वजह से दादी माँ बहुत उदास रहने लगी थीं। लेखक के पिता जी ने  दादाजी के श्राद्ध में काफी रुपये खर्च किए थे। जिस इस वजह से लेखक के पिता उधारी में चले गए थे, लेकिन दादी माँ ने अपने दिल को पत्थर कर दादाजी की दी हुई आखिरी निशानी सोने के कंगन, पिताजी को दे दिए ताकि वह कर्ज चुका सकें। लेखक को दादी माँ का यह व्यवहार किसी देवी माँ से कम नहीं लगा। लेखक अपने वर्तमान समय में आने पर भी यकीन नहीं कर पा रहे थे कि उनकी दादी माँ अब सचमुच नहीं रहीं। उनके साथ उन्होंने इतना अच्छा समय बिताया था। लेखक के लिए यह बहुत कठिन समय था। लेखक एकान्त में शांत रूप से अपनी दादी माँ को याद करते रहे।

 

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