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1800-102-2727प्रस्तुत लेख में लेखक ने नदियों का वर्णन किया हुआ है, जो हिमालय से निकलकर सागर तक पहुंचने में भिन्न प्रकार के रूप धारण कर लेती हैं। लेखक ने हमेशा से इन नदियों को दूर से ही देखा था, उनके अनुसार मैदानी इलाकों में नदियां शांत गंभीर तथा अपने आप में खोई हुई-सी दिखती हैं। लेखक के मन में इन नदियों के प्रति हमेशा से ही आदर और श्रद्धा का भाव रहता था। जिस प्रकार से किसी सभ्य महिला के लिए रहता हो। वह इन नदियों की धारा से अपना रिश्ता समझते थे। वह इन्हें अपने जीवन का अभिन्न अंग समझते थे। इन नदियों की मानव जाती के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका रहती थी इसलिए इन नदियों के आदर का भाव लेखक के अंदर सहज रहता था ।
किंतु इस बार लेखक ने इन नदियों का एक भिन्न रूप देखा। हिमालय से बहने वाली गंगा, यमुना, सतलुज मैदान में उतरकर बहुत विशाल हो जाती हैं, किंतु ये जितनी विशाल होती हैं उतनी ही शांत भी हो जाती हैं। इनके अन्दर वो चंचलता, वो उल्लास मैदानों में नहीं दिखाई देती। लेखक इसे देखकर हैरान हो जाते हैं कि महान पिता का विराट प्रेम पाकर भी ये नदियां इतनी शांत और इतनी अतृप्त-सी क्यों हैं? यह किस लिए और कहाँ भागी जा रही हैं। ऐसी कौन- सी जगह है, जहाँ पर ये शांत होंगी। ये पहाड़ों, गहरी गुफाओं एवम् घाटियों, इन सभी के प्रेम को छोड़कर ये सिर्फ आगे बढ़ी जा रही हैं। और जब ये मैदानी जगहों पर पहुंचती हैं तो ये अपने बीते दिनों को क्यों नहीं याद करती? ये हिमालय अपनी इन नदियों को लेकर परेशान तो जरूर रहता होगा, लेकिन वह अपने इन प्रश्नों का उत्तर पाएं तो कैसे, क्योंकि सिवाय मौन के कोई उत्तर नहीं होगा। सिंधु और ब्रह्मपुत्र के मध्य रावी, सतलज, चेनाब, झेलम, गंगा, गंडक, यमुना आदि बहुत-सी नदियां हैं जो हिमालय से ही निकलती हैं।
पहाड़ी लोगों के लिए इन नदियों का यह रूप बहुत सामान्य है, लेकिन लेखक को नदियों का मैदानी रूप बहुत लुभावना लगता है। लेखक अपनी दृष्टि में हिमालय को और समुद्र को एक रिश्ते में बांध देते हैं जिसमें वो हिमालय को ससुर और समुद्र को उनका दामाद कहते हैं।
कालिदास का एक काव्य मेघदूत जिसमें उन्होंने बेतवा नदी को एक प्रेमिका के रूप में प्रस्तुत किया है। इस आधार पर लेखक का कहना है कि नदियां समुद्र में, पहाड़ों में एवम् मैदानों में अलग रूप में होती हैं और समय दर समय लेखकों ने इन्हे अलग अलग रूप में देखा है।
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