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NCERT Solutions for Class 7 हिंदी वसंत पाठ 15: नीलकंठ

लेखिका इस कहानी में स्टेशन से लौट रही होती हैं और उन्हें चिड़ियों और खरगोश की याद आती है। अपने ड्राइवर से वो दूकान की ओर ले चलने को कहती हैं। मियाँ दुकान के निकट पहुंचते ही उन्होंने सड़क पर आकर ड्राइवर को रुकने का संकेत दिया। लेखिका को देखते ही बड़े मियाँ की  भाषण तुफान मेल चालु हो गयी जिसके लिए कोई निश्चित स्टेशन नहीं है। इस तथ्य से परिचित होने के कारण उन्होंने बीच में रोककर ही पूछा,” मोर के बच्चे कहाँ है?” बड़े मियाँ के हाथ के संकेत का अनुसरण करते हुए उन्होंने देखा कि एक छोटे से पिंजरे में तीतर के दो बच्चे बैठे थे। उनके निरीक्षण के साथ-साथ मियाँ की भाषण मेल चली जा रही थी - ईमान कसम, गुरु जी -चिडीमार ने मुझसे इस मोर के जोड़े के नकद तीस रुपये लिए हैं, अब आप जो मुनासिब समझे। लेखिका ने तीस चिडी मार के नाम के और पाँच बड़े मियाँ के ईमान के देकर वह  छोटा पिजड़ा कार में रखा।

घर पहुंचते ही सब कहने लगे तीतर है, मोर कहकर उसने ठग लिया है । कदाचित अनेक बार ठगे जाने के कारण यह बात लेखिका की पीड़ा बन गई। उन्होने पहले अपने पढ़ने-लिखने के कमरे में उनका दरवाजा खोला, फिर दो कटोरो में सत्तु की छोटी-छोटी गोलियाँ और पानी रखा वे दोनों चुहेदानी जैसे पिंजड़े से निकलकर कमरे में मानों खो-सी गईं, कभी मेज के नीचे घुस जाएँ कभी अलमारी के पीछे। दो चार दिन वे इसी प्रकार दिन में इधर-उधर गुप्तवास करतीं और रात में कमरे में रखी टोकरी में प्रकट होतीं । पर दरवाजा लेखिका निरंतर बंद रखना पड़ता था खुला रहने पर चित्रा (उनकी बिल्ली), इन नवागुंतकों का पता लगा सकती थी और उसके शोध के परिणाम क्या होता, यह अनुमान लगाना कठिन नहीं था| वैसे वह चूहों पर भी आक्रमण नहीं करती उसके लिए यह दरवाजा बंद रहे दोनो नवागंतुक ने पहले से रहनेवालों में वैसा कुतूहल जगाया जैसा नववधू के आगमन पर परिवार में स्वाभाविक है ।

धीरे-धीरे दोनों मोर के बच्चे बढ़ने लगे कायाकल्प वैसा ही क्रमश: और रंगमय उनका था जैसा इल्ली से तितली का बनना। नीलाभ ग्रीवा के कारण मोर को नीलकंठ का नाम और उसकी छाया के रहने के कारण मोरनी का नामकरण हुआ राधा। नीलकंठ ने अपने आप को चिड़ियाघर के निवासी जीव-जंतुओं का सेनापति और संरक्षक नियुक्त कर लिया। सवेरे ही वह सब खरगोश, कबूतर आदि की सेवा एकत्रकर दाना ले जाते और घुम-घुमकर मानो सबकी रखवाली करते रहते।

एक रोज़ एक साँप पानी के भीतर पहुंच गया| सब जीव-जंतु भागकर इधर-उधर छिप गये एक शिशु साँप के पकड़ में आ गया नीलकंठ ऊपर झूले में सो रहा था। उसके चौकलो कानों ने उस मदस्तर की व्यथा पहचानी और वह एक झटके में नीचे आ गया। उसने साँपो को फन के पास पंजों से दबाया और फिर चोंच से इतना प्रहार किया कि वह अधमरा हो गया।

नीलकंठ का पसदीदा मौसम था बारिश। लेखिका कुछ समय बाद एक घायल मोरनी को अपने साथ ले आयीं और कुछ समय में वो सही हो गयी। वो नीलकंठ के साथ ही रहने कर पर्यटन करती और  नील राधा से दूर होने का दुःख नहीं ले सका, लेखिका आशा करती रहीं कि थोड़े दिन बाद सबसे मेल हो जायेगा चार माह के उपरांत एक दिन सबेरे जाकर देखा नीलकंठ पूछ परत पर फैलाकर धरती पर बैठा हुआ था। लेखिका के पुकारने पर भी उसके न उठने पर संदेह हुआ वास्तव में वह मर गया था, क्यों की अब तक उत्तर नहीं मिल सका। लेखिका उसे संगम ले गई, उसे गंगा की बीच धार में ही प्रवाहित किया। नीलकंठ के न रहने पर राधा तो कई दिन कोने में बैठी रही, कुब्जा ने कोलाहल के साथ खोज ढूंढ आरंभ की।

एक दिन ग्राम में उतरी थी कि उसने कजली पर भी ये प्रहार किया परिणामतः कजली के दो दाँत उसकी गर्दन पर लग गये पर उसका कलह-कोलाहल और द्वेष प्रेम भरा जीवन बचाया न जा सका। इन तीन पक्षियों ने लेखिका को  पक्षी प्रकृति की विभिन्नता का जो परिचय दिया है वह मेरे लिए महत्वपूर्ण है। राधा अब प्रतीक्षा में अकेली रह गयी थी वह कभी ऊँचे झूले पर और कभी अशोक की डाल पर अपनी आवाज़ को तीव्रतर कर नीलकंठ को बुलाती रहती थी।

 

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