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1800-102-2727प्रस्तुत कहानी में कहानीकार अपने बालपन की घटना बताते हैं कि कैसे वह और उनके संघी-साथी, धूल-धूसर हो मैले-कुचैले कपड़ों में धमाचौकड़ी मचाते थे। उनमें से स्कूल जाने में तो किसी की रुचि ही नहीं थी। ऐसा कोई न था जो खुशी से स्कूल जाता हो। गर्मियों की छुट्टी पड़ते ही उनके उत्साह का ठिकाना न रहता। सभी ननिहाल जाकर खूब मज़े करते, घंटों तालाब में डुबकियां लगाकर नहाते, जो मन होता खाते। इन्हीं सब मौज-मस्ती में कब छुट्टियों का समय निकल जाता पता नहीं चलता। जैसे-जैसे छुट्टी के दिन घटते जाते, बच्चों की चिंता भी बढ़ने लग जाती। स्कूल में जाते ही असल डर से तो तब परिचय होता था जब अंग्रेज़ी हेडमास्टर शर्मा जी और पीटी मास्टर प्रेमचंद जी का घंटा होता था। बच्चों को अधिक मजा स्काउटिंग का अभ्यास करने में आता, हवा में दाई-बाई ओर लेफ्ट- राईट करते हुए उन्हें लगता की वे ही फ़ौजी हैं।
बच्चों के लिए तो मुसीबत उस दिन खड़ी हो गई जब पीटी मास्टर एक दिन फ़ारसी पढ़ाने आए और एक शब्दरूप याद करने को देते हुए बोलो की कल इसी घंटे में यह सुनाना होगा। परंतु रात भर खूब पढ़ने पर भी कोई वह शब्दरूप ना सुना सके जिसपर पीटी मास्टर ने सभी को उकड़ू बैठा कान पकड़ने की सजा दे दी। जब अंग्रजी हेडमास्टर ने यह सब देखा तो पीटी वाले सर को खूब डांट- फटकार लगाई, जिसके अगले दिन से उनका कोई पता न चला। वे निलंबित हो चुके थे। कुछ विद्यार्थियों के साथ जब लेखक पीटी मास्टर के घर पहुंचे तो देखा उन्हें किसी भी बात का थोड़ा-भी अफ़सोस न था। वे अपने पालतू पंछियों के साथ व्यस्त थे। लेखक उन्हें जब देखते हैं तो सोचते हैं कि कैसे एक रोबदार इंसान अपने तोते से बड़े स्नेह से बात कर रहा है।
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