Call Now
1800-102-2727इस पाठ में लेखक ने स्त्री शिक्षा के महत्व को प्रस्तुत करते हुए उन विचारों का खंडन किया है जिनमें विद्वानों द्वारा दिए गए तर्क इस तरह के होते हैं कि, संस्कृत के नाटकों में पढ़ी-लिखी या कुलीन स्त्रियों को गँवारों की भाषा का प्रयोग करते दिखाया गया है। लेखक कहते हैं कि हिंदी, बांग्ला भाषाएं आजकल की प्राकृत भाषा हैं। जिस तरह हम इस ज़माने में हिंदी, बांग्ला भाषाएं पढ़कर शिक्षित हो सकते हैं, उसी तरह उस जमाने में यह अधिकार प्राकृत को हासिल था, फिर भी प्राकृत बोलना अनपढ़ होने का सबूत है, यह बात नहीं मानी जा सकती।
जिस समय नाट्य-शास्त्रियों ने नाट्य संबंधी नियम बनाए थे उस समय उन्होंने उनकी भाषा संस्कृत और अन्य लोगों और स्त्रियों की भाषा प्राकृत कर दिया। लेखक तर्क देते हुए कहते हैं कि शास्त्रों में बड़े-बड़े विद्वानों की चर्चा मिलती है, किंतु उनके सीखने संबंधी पुस्तक या पांडुलिपि नहीं मिलती। उसी प्रकार प्राचीन समय में नारी विद्यालय की जानकारी नहीं मिलती तो इसका अर्थ यह तो नहीं लगा सकते हैं कि सारी स्त्रियां गँवार थी। लेखक प्राचीन काल की अनेकानेक शिक्षित स्त्रियां जैसे शीला, विज्जा के उदाहरण देते हुए उनके शिक्षित होने की बात को प्रमाणित करते हैं।
लेखक पिछड़े विचारधारा वाले विद्वानों से कहते हैं कि अब उन्हें अपनी पुरानी मान्यताओं में बदलाव लाना चाहिए। जो लोग स्त्रियों को शिक्षित करने के लिए पुराणों के हवाले मांगते हैं उन्हें श्रीमद् भागवत, दशम स्कंध के उत्तरार्ध का 53 वां अध्याय पढ़ना चाहिए जिसमें रुक्मिणी हरण की कथा है। इसमें रुक्मिणी ने एक लंबा-चौड़ा पत्र लिखकर श्रीकृष्ण को भेजा था जो प्राकृत में नहीं था। लेखक कहते हैं कि आज की मांग है कि हम इन पिछड़ी मानसिकता की बातों से निकलकर सबको शिक्षित करने का प्रयास करें।
महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म स्थान 1864 में ग्राम दौलतपुर, जिला रायबरेली, उत्तर प्रदेश था। इन्होंने सन् 1903 में प्रसिद्ध हिंदी मासिक पत्रिका सरस्वती का संपादन शुरू किया तथा 1920 तक उससे जुड़े रहे। सन् 1938 में उनका देहांत हो गया, लेकिन अपने समय काल में उन्होंने बहुत से निबंध संग्रह और द्विवेदी काव्य माला जैसी मशहूर कविता भी लिखी।
Talk to our expert