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1800-102-2727लेखिका का जन्म मध्य प्रदेश के भानपुरा गाँव में हुआ था। परंतु उनकी यादें अजमेर के ब्रह्मापुरी मोहल्ले के एक-दो मंजिल मकान में पिता के बिगड़ी हुई मनोस्थिति से शुरू हुई। वे कांग्रेस से जुड़े होने के साथ में समाज सेवा से भी जुड़े थे परंतु किसी के द्वारा धोखा दिए जाने पर वह आर्थिक मुसीबत में फंस गए और अजमेर आ गए। वे बेहद क्रोधी, जिद्दी और शक्की हो गए थे, जब-तब वे अपना गुस्सा लेखिका के बिन पढ़ी माँ पर उतारने के साथ-साथ अपने बच्चों पर भी उतारने लगे थे।
इस हीनता की भावना ने उन्हें विशेष बनने की लगन उत्पन्न की परन्तु लेखकीय उपलब्धियाँ मिलने पर भी वह उससे उबर नहीं पाईं। घर में जब कभी विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के जमावड़े होते और बहस होती तो लेखिका के पिता उन्हें बहस में बैठाते, जिससे उनके अंदर देशभक्ति की भावना जागी। सन् 1945 में सावित्री गर्ल्स कॉलेज के प्रथम वर्ष में हिंदी प्राध्यापिका शीला अग्रवाल ने लेखिका में ना केवल हिंदी साहित्य के प्रति रुचि जगाई बल्कि साहित्य के सच को जीवन में उतारने के लिए प्रेरित भी किया। सन् 1946-1947 के दिनों में लेखिका प्रभावित होकर कॉलेजों का बहिष्कार करने लगी।
प्रिंसिपल ने कॉलेज से निकाल देने से पहले पिता को बुलाकर शिकायत की तो वह क्रोधित होने की बजाय लेखिका के नेतृत्व शक्ति को देखकर बेहद खुश हुए। सन् 1947 में मई के महीने में कॉलेज ने लेखिका समेत 2-3 छात्राओं का प्रवेश थर्ड ईयर में निषिद्ध कर दिया परंतु लेखिका और उनके मित्रों ने बाहर भी इतना हुड़दंग मचाया कि आखिर उन्हें प्रवेश लेना ही पड़ा। यह खुशी लेखिका को इतना खुश ना कर पायी, जितना आज़ादी की खुशी ने दी।
मन्नू भंडारी का जन्म सन् 1931 में हुआ। उनकी इंटर तक की शिक्षा अजमेर शहर में हुई बाद में उन्होंने हिंदी एम.ए. किया। इनके प्रमुख कार्यों में कहानी संग्रह, उपन्यास आदि शामिल हैं। इन्हें हिंदी अकादमी का शिखर सम्मान, भारतीय भाषा परिषद (कोलकाता), उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान आदि पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया है।
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