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1800-102-2727ठंड का मौसम था, सायंकाल में लेखक अपने साथियों के साथ खेल-कूद में व्यस्त थे, तभी एक आदमी ने लेखक को आवाज़ दी कि तुम्हारे भाई बुला रहे हैं। जब वह घर पहुँचते हैं तो उनके बड़े भाई पत्र लिख रहे थे, लेखक के बड़े भाई ने उन्हें चिट्ठियाँ दीं और उन्हें मक्खनपुर पोस्ट ऑफिस में डालने को कहा।
लेखक और उनके छोटे भाई अपने-अपने डंडे लेकर चल दिए। उन्होंने चिट्ठियों को टोपी में रख लिया क्योंकि कुर्ते में जेब नहीं थी। वे लोग एक ही साँस में गांव से चार फर्लांग दूर उस कुएँ के पास आ गए जहाँ एक अति भयंकर काला सांप रहता था। कुआं कच्चा था और चौबीस हाथ गहरा था, उसमें पानी नहीं था, लेखक और उसके सहपाठी स्कूल जाते समय उस कुएं में प्रतिदिन ढेला डालते और साँप की आवाज सुनते थे। लेखक ने एक ढेला उठाया और उछलकर एक हाथ से टोपी उतारते हुए सांप पर ढेला गिरा दिया टोपी के हाथ में लेते ही तीनों चिट्ठियाँ कुएं में जा गिरी। कुछ देर तक सोचने के फैसला हुआ कि लेखक अंदर जाकर चिट्ठियाँ निकालेंगे। उन लोगों ने धोतियों और रस्सियों में गांठे लगाकर एक बड़ी रस्सी तैयार की और लेखक धीरे-धीरे नीचे उतरने लगे।
साँप के फ़न की ओर लेखक की आँखें टिकी हुई थीं, दो चिट्ठियाँ साँप के पास पड़ीं थीं तथा एक चिट्ठी लेखक के पास पड़ी थी। डंडे को लेखक ने जैसे ही साँप की दायीं ओर पड़ी चिट्टी के तरफ आगे बढ़ाया, साँप ने अपना विष छोड़ दिया जो डंडे पर लगा। डंडा लेखक के हाथ से छूट गया। लेखक ने तुरंत ही लिफ़ाफ़े व पोस्ट कार्ड चुन लिए और धोती वाली रस्सी में बाँध दिया जिन्हें उनके छोटे भाई ने उन्हें ऊपर खींच लिया।
लेखक ग्यारह वर्ष की उम्र में 36 फुट चढ़े। 10वीं पास करने के बाद लेखक ने यह घटना माँ को सुनाई तब माँ ने उन्हें प्रेमवश अपनी गोद में बैठा लिया।
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