यह पाठ लेखक 'धर्मवीर भारती' की आत्मकथा है। सन् 1989 में लेखक को लगातार तीन हार्ट अटैक आए उनकी साँसें, धड़कन सब बंद हो चुकी थीं। डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया, परन्तु डॉक्टर बोजेंस ने हिम्मत नहीं हारी और उनके मृत पड़ चुके शरीर को नो सौ वॉल्ट्स के शॉक दिए जिससे उनके प्राण तो लौट आये परन्तु ह्रदय का चालीस प्रतिशत हिस्सा नष्ट हो गया और उसमें भी तीन अवरोध थे। तय हुआ कि उनका ऑपरेशन बाद में किया जाएगा। उन्हें घर लाया गया लेखक की जिद पर उन्हें उनकी किताबों वाले कमरे में लिटाया गया।
लेखक को सामने रखीं किताबें देखकर ऐसा लगता मानो उनके प्राण किताबों में ही बसें हों उन किताबों को लेखक ने पिछले चालीस-पचास सालों में जमा किया था जो अब एक पुस्तकालय का रूप ले चुका था। उनके लिए बालसखा और चमचम दो बाल पत्रिकाएँ भी आतीं थीं जिन्हें पढ़ना लेखक को बहुत अच्छा लगता था। लेखक बाल पत्रिकाओं के अलावा 'सरस्वती' और 'आर्यमित्र’ भी पढ़ने की कोशिश करते थे। 'सत्यार्थ प्रकाश’ पढ़ना उन्हें बहुत पसंद था।
कहानी आगे बताती है कि तीसरी कक्षा में उनका दाखिला स्कूल में करवाया गया, पांचवीं में लेखक फर्स्ट आये और अंग्रेजी में उन्हें सबसे ज्यादा नंबर मिले, इस कारण उन्हें स्कूल से दो किताबें इनाम में मिलीं। लेखक के मुहल्ले में एक लाइब्रेरी थी जिसमें लेखक बैठकर किताबें पढ़ते थे। कहानी यह भी बताती है कि उनका आर्थिक संकट बहुत बढ़ गया था।
लेखक ने किस तरह से अपनी पहली साहित्यिक पुस्तक खरीदी इसका वर्णन किया है। पाठ्य पुस्तकें खरीद कर लेखक के पास दो रुपए बचे तभी वहाँ उन्हें 'देवदास' की पुस्तक दिखाई दी। पुस्तक की कीमत केवल दस आने ही थी बचे हुए पैसे लेखक ने माँ को दे दिए। लेखक मानते हैं कि उनके ऑपरेशन के सफल होने के बाद उनसे मिलने आये मराठी के वरिष्ठ कवि विंदा करंदीकर ने उस दिन सच कहा था कि सैकड़ों महापुरुषों के आशीर्वाद के कारण ही उन्हें पुनर्जीवन मिला है।
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