यह कहानी इस बात से शुरू होती है जब लेखक तक्षशिला का खंडहर देखने भ्रमण पर गए थे। दोपहर के समय भूख लगने पर वह किसी ऐसी जगह की तलाश में थे जहाँ उन्हें भोजन मिल सके। वहीं उन्हें हामिद खाँ मिले, उन्होंने लेखक को भोजन करवाया, हामिद के मुल्क में हिंदू और मुस्लिम के बीच जरा भी सौहार्द नहीं था। लेकिन लेखक के मुल्क में हिंदू और मुस्लिम बड़े प्रेम से रहते थे। हामिद लेखक की बात पर विश्वास नहीं कर पाया। लेखक ने उसे बताया की उनके यहाँ हिन्दू-मुसलमान में कोई फर्क नहीं है वे सब प्रेम से रहते हैं।
हामिद इन बातों को ध्यान से सुनता रहा और बोला की काश वह भी यह सब देख पाता, हामिद ने लेखक का स्वागत करते हुए उन्हें खाना खिलाया। जब लेखक पैसे देने लगे तो हामिद ने पैसे लेने से मना कर दिया और कहा जब आप हिन्दुस्तान जाओगे तब वहाँ मुसलमानी होटल में पुलाव खाना और तक्षशिला के भाई हामिद को याद करना। यह कहानी इस बात की तरफ़ संकेत करती है कि हिन्दू हो या मुसलमान कोई भी अशांति या दंगे नहीं चाहता है, वे सब प्रेम से मिलकर रहना चाहते है।
इस कहानी से हमें यह संदेश मिलता है कि धर्म के नाम पर लोगों के अंदर कुछ अलग नहीं है, कुछ स्वार्थी तत्वों के कारण हम आपस में लड़ाई करते हैं । यह कहानी दो अलग-अलग धर्मों के व्यक्तियों के बीच आत्मीय संबंध की दिल को छूने वाली कहानी है । यह कहानी हमें प्रेरणा देती है कि धर्म के नाम पर लड़ने के स्थान पर आपस में प्रेम से रहना चाहिए।
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