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1800-102-2727एक गाँव में दुलारी नाम की नाच-गाने का पेशा करने वाली स्त्री रहती थी। वह दुक्कड़ नामक बाजे पर गीत गाने के लिए प्रसिद्ध थी। उसके कजली गायन का सब लोग सम्मान करते थे, गाने में ही सवाल-जवाब करने में वह बहुत कुशल थी।
एक बार खोजवाँ दल की तरफ से गीतों में सवाल-जवाब करते हुए दुलारी की मुलाकात टुन्नू नाम के एक लड़के से हुई। दुलारी ने तब अपने प्रति उसके प्रेम को अनुभव किया था।
होली के एक दिन पहले टुन्नू दुलारी के घर आया उसने खादी आश्रम की बुनी साड़ी दुलारी को दी। दुलारी ने उसे बहुत डांटा और साड़ी फेंक दी, टुन्नू अपमानित होकर रोने लगा। टुन्नू के जाने के बाद दुलारी ने साड़ी पर पड़े आँसुओं के धब्बों को चूम लिया। टुन्नू और अपने प्रेम को आत्मा का प्रेम समझते हुए भी दुलारी चिंतित थी।
उसी समय फेंकू सरदार धोतियों का बंडल लेकर दुलारी की कोठरी में आया, उस समय उसकी गली में से विदेशी वस्त्रों की होली जलाने वाली टोली निकली। दुलारी ने फेंकू सरदार का दिया बंडल फैली चादर में डाल दिया, दुलारी ने फेंकू सरदार को उसकी किसी बात पर झाड़ से पीटकर घर से बाहर निकाल दिया। झींगुर ने आकर बताया कि टुनू को सिपाहियों ने मार दिया। टुन्नू के मारे जाने का समाचार सुनकर दुलारी की आँखों से अविरल आँसुओं की धारा बह निकली उसने टुन्नू की दी साधारण खद्दर की धोती पहन ली।
कल शाम अमन सभा द्वारा टाउन हॉल में दुलारी को नचाया-गवाया गया था। वह उस स्थान पर गाना नहीं चाहती थी, जहाँ आठ घंटे पहले उसके प्रेमी की हत्या कर दी गई थी। फिर भी उसने दर्द भरे स्वर में ही “ठैयाँ झुलनी हे रानी हो रामा, कासों मैं पूछूँ” गाया। संपादक महोदय को रिपोर्ट तो सत्य लगी, परंतु वे इसे छापने में असमर्थ थे।
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