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1800-102-2727कवि कहते हैं दीवाने अर्थात वीर देश की आजादी के लिए कुछ भी करने को तत्पर हैं। ये बेफिक्र लोग हैं जहाँ भी ये जाते हैं, खुशियाँ खुद चली आती हैं। ये लोग एक जगह नहीं टिकते, जब ये आते हैं तो कुछ के चेहरों पर खुशी यानी अंग्रेज़ सरकार द्वारा प्रताड़ित लोगों के चेहरों पर खुशी , तो वहीं जब ये जाते हैं यानी शहीद होते हैं तो उन लोगों के आँखों में आँसू छोड़ जाते हैं।
कवि कहते हैं कि दीवाने लोगों से यह ना पूछे कि वे कहाँ जा रहे हैं चूंकि मंजिल किधर है यह उन्हें भी नहीं पता। वे मंजिल की ओर चलते जाने को ही जीवन समझते हैं। वे जग से दुःख लेते जा रहे हैं और अपने गुण और खुशियाँ देते जा रहे हैं। मंजिल के रास्ते में दीवानों ने लोगों पर हो रहे अत्याचारों, उनके विचारों को सुना और कुछ अपने विचारों को भी रखा। ऐसा कर उन्हें सुख एवं दुःख दोनों का अनुभव हुआ और इसी तरह इन्होंने अपना जीवन जिया।
वे अपने लक्ष्य यानी आजादी से दूर रहे, और इसी बात का भार अपने सर लिए वे दुनिया से विदा हुए। दीवानों के लिए कौन अपना? कौन पराया? वे धर्म, जाति को नहीं मानते, उनका लक्ष्य तो केवल आजादी है ताकि सब खुशी से रहें। हंसी से रहने के लिए जो बंधन दीवानों ने बनाये थे, जब वह आजादी छीनने लगे तब उन्होंने खुद इन बंधनों को भी तोड़ा।
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