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1800-102-2727लाला झाऊलाल काशी के एक खाते-पीते और स्वाभिमानी व्यक्ति थे। अपने मकान के नीचे बनी दुकानों से सौ रुपये मासिक किराया कमाते थे , जो ज्यादातर उनके अच्छे खाने-पीने और पहनने में खर्च हो जाते थे। एक दिन उनकी पत्नी ने ढाई सौ रुपये की मांग की। वह पंडित बिल वासी मिश्र के पास गए और सब बताया।
दूसरे दिन लाला जी परेशान हो कर छत पर टहल रहे थे । उन्हें प्यास लगी तो नौकर को पानी के लिए आवाज लगाई। उनकी पत्नी गिलास भूल गई और लोटे में पानी ले आई । दो-चार घूंट पिया ही था तभी लोटा उनके हाथ से छूट गया और नीचे एक दुकान के पास खड़े एक अंग्रेज के पैर पर जा गिरा। अंग्रेज गुस्से से लाला जी को अंग्रेजी में गाली देने लगा । इतने में पंडित बिल वासी जी आ गए और पंडित जी ने लाला जी को पुलिस से पकड़वाने का सुझाव दिया और लाला जी से लोटा पचास रुपये में खुद खरीदने की बात कही।
अंग्रेज के हैरान होने पर उन्होंने उस लोटे को ऐतिहासिक बताया और बताया की वह अकबरी लोटा है जिसकी तलाश दुनिया भर के म्यूजियम को है। अंग्रेज पुरानी चीजों को संग्रह करने का शौकीन था। उनके बीच लोटे के लिए बोली लगने लगी। अंग्रेज ने जोश में आते हुए पांच सौ रुपये देने की बात कही जिस पर पंडित जी कुछ न बोल सके।
पंडित जी जब अपने घर गए तब उन्हें नींद नहीं आ रही थी। फिर उन्होंने ढाई सौ रुपये वापस रख दिए जो उन्होंने चोरी छुपे निकाले थे लाला जी को देने के लिए। अब पैसे वापस होने पर उन्हें चैन की नींद आई।
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