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1800-102-2727‘जहां पहिया है' पाठ में जमीला बीवी नामक एक युवती, जिसने साइकिल चलाना शुरू किया था । जमीला की लेखक से बात हुई, तो उसने कहा-"यह मेरा अधिकार है, अब हम कहीं भी जा सकते हैं, अब हमें बस का इंतजार नहीं करना पड़ता।" फातिमा एक विद्यालय में अध्यापिका है, वह शाम को आधे घंटे के लिए किराए पर साइकिल लेकर चलाती है।
जिले में चारों तरफ साइकिल की ही चर्चा हो रही है। दोपहर का खाना पहुँचाने वाली औरतें इसका भरपूर प्रयोग कर रही हैं। इसी संदर्भ में साइकिल आंदोलन की एक नेता का कहना है- "मुख्य बात यह है कि इस आंदोलन ने महिलाओं को बहुत आत्मविश्वास प्रदान किया, महत्त्वपूर्ण यह है कि इसने पुरुषों पर उनकी निर्भरता कम कर दी है " अब साइकिल एक संपूर्ण सवारी बन चुकी है।
‘जहाँ पहिया है' पाठ में प्रारंभ में साइकिल चलाने पर पुरुषों ने इसका जमकर विरोध किया, लेकिन बाद में इसे सामाजिक मान्यता मिल गई। पुरुष वर्ग का मानना था कि महिलाओं का साइकिल चलाना इनकी मर्यादा के विपरीत है। वर्ष 1992 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के बाद इस जिले में क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ था । यहाँ की 1500 महिलाओं ने पुडुकोट्टई जिले की काया ही पलट कर रख दी थी। 22 वर्षीय मनोरमनी साइकिल चलाने के विषय में अपने विचार प्रकट करते हुए कहती है कि "हमारा इलाका मुख्य शहर से कटा हुआ है, यहाँ जो साइकिल चलाना जानते हैं, उनकी गतिशीलता बढ़ जाती हैं।" जहाँ पहिया है पाठ का सार समाज में महिलाओं की भूमिका को सम्मान देने के साथ- साथ उसे स्वीकार करना है। हमें महिलाओं को सदैव सम्मान की दृष्टि से देखना चाहिए।
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