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1800-102-2727ध्यानचंद को हॉकी खेलते देखकर देश के बेहतरीन हॉकी खिलाड़ी बनने वाले केशवदत्त 1948 के ओलंपिक टीम का हिस्सा थे। वह बताते हैं कि हॉकी खेलने से पहले उन्होंने लाहौर में बैडमिंटन में चैंपियनशिप हासिल की थी। एक बार उन्होंने ध्यानचंद्र को हॉकी खेलते देखा और हॉकी को ही अपना जीवन बना लिया । वे ध्यानचंद्र से बहुत प्रभावित थे । वह 1948 ओलंपिक के खराब हालत को बताते हुए कहते हैं कि उन्हें भी लाहौर से भागना पड़ा था।
सभी खिलाड़ियों के दिमाग पर खेल से ज़्यादा भारत-पाकिस्तान के अलगाव और ट्रैजेडी का असर दिख रहे थे । उनके कैंप में हर व्यक्ति इन सब से प्रभावित था। जब वह लंदन पहुंचे तो वहाँ भी विश्व युद्ध के बाद के हालात बहुत खराब थे , हर जगह गोलियों के निशान थे। सबको लगता था कि भारत पाकिस्तान का फाइनल मैच होगा पर इंग्लैंड ने पाकिस्तान को सेमीफाइनल में हरा दिया था। भारत ने इंग्लैंड को फाइनल में 4-0 से हराया, जब जन-गण-मन बजा तो सभी खिलाड़ियों की आँखों में गर्व के आंसू थे। सब बहुत खुश थे कि जिसने उन पर इतने साल तक राज किया आज उसी की टीम को उनके घर पर उन्होंने हरा दिया। उन्हें बहुत अफसोस है कि अब हॉकी का स्तर पहले से बहुत गिर चुका है।
आज के समय में टीम गेम की हालत बहुत खराब है, तो वहीं व्यक्तिगत खेलों में विश्वनाथन आनंद, सानिया मिर्जा को सफलता जरूर मिली है। अंग्रेज़ों के समय में एक बात अच्छी थी कि हर स्कूल में खेल बहुत जरूरी थे । तब खेलना उतना ही जरूरी था, जितना पढ़ना। शूटिंग और क्रिकेट में भारत ने तरक्की की है। आखिर में केशवदत्त कहते हैं कि हम जिसमें सालों पहले आगे थे उन खेलों में पिछड़ गए हैं और जहाँ सबसे आगे होना चाहिए वहाँ सिर्फ आगे हैं।
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