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1800-102-2727प्रस्तुत एकांकी “सस्ते का चक्कर” को “सूर्य बाला” द्वारा जी लिखा गया हैं । इस कहानी के माध्यम से लेखक हमें यह संदेश देना चाहते हैं कि हमें कभी सस्ते की लालच में नहीं पड़ना चाहिए । इस एकांकी में नरेंद्र और अजय की कहानी बताते हुए, लेखक ने नरेंद्र को सैर-सपाटे, खेलकूद और अजय को आज्ञाकारी, पढ़ाई-लिखाई में मशरूफ बताया है। नरेंद्र और अजय काफी अच्छे मित्र होते हैं । अजय की मम्मी, मिसेज मेहता की तबियत खराब थी इसलिए वह स्कूल से घर जल्दी जाना चाहता थे , पर नरेंद्र की मनमर्जी और 50 पैसे में तीन लॉलीपॉप के चक्कर में उसे घर पहुँचने में देर हो गई। होता यह है कि जब अजय स्कूल के बाहर रिक्शा का इंतजार कर रहा होता है तभी नरेंद्र भी वहीं पर होता । उसी वक्त उस जगह पर एक आदमी आता है जो सस्ते में लॉलीपॉप बेच रहा होता । नरेंद्र अजय से कहता वो ये स्कूल की फीस के माध्यम से खरीदेगा तब तक वो अजय को वहीं उसका इंतजार करने के लिए कहता और उस आदमी के पीछे चला जाता है।
अजय उसे बहुत रोकता है लेकिन वो इसकी एक बात भी नहीं सुनता और अपनी मनमानी करते हुए चला जाता है। स्कूल के बाहर ही अजय, नरेंद्र का इंतजार करता रहा , जब वह नहीं आया तो अजय परेशान हो जाता और बगीचे की तरफ ढूंढने जाता है। उधर दूसरी और दोनों की माताएं परेशान होती हैं कि बच्चे अभी तक क्यों नहीं आए और वो दोनों उन्हें ढूंढने के लिए घर से जाने का सोचती हैं । दूसरी तरफ अजय ने वहाँ पर निडरता दिखाते हुए उस फेरीवाले का पीछा किया जो नरेंद्र को एक बड़े थैले में चादर ओढ़े लिए जा रहा था। उसने काफी दूर चलने के बाद पास के पुलिस स्टेशन में जाकर इंस्पेक्टर को सारी बात बताई और इंस्पेक्टर ने बदमाश को पकड़ लिया।
नरेंद्र और अजय के साथ इंस्पेक्टर उनके घर आया और सारी बात मिसेज मेहता और नरेंद्र की माँ रेखा को बताई जो नरेंद्र की चिंता में मिसेज मेहता से पूछने उनके घर आई और उन दोनों को ढूंढने जाने वाली थी । इंस्पेक्टर के कहने पर अजय ने सारी बात बताई , अंत में निश्चय हुआ कि अजय को प्रधानमंत्री द्वारा इस साहसिक कार्य के लिए इनाम मिलेगा। इंस्पेक्टर ने अजय की पीठ थपथपाई और शाबाशी दी। इस कहानी के माध्यम से हमें यह शिक्षा मिलती हैं कि हमें सस्ते समान के लालच में नहीं आना चाहिए नहीं तो वो हमारे लिए भी मुसीबत का कारण बन सकती है ।
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