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1800-102-2727“नाटक में नाटक” कहानी “लेखक मंगल सक्सेना” द्वारा लिखित है । लेखक ने असल में कहानी के जरिए एक नाटक को ही दर्शाया है। कहानीकार ने इसके लिए राकेश और उसके साथी मोहन, सोहन, श्याम को पात्र बनाया है। इस कहानी के माध्यम से उन्होंने राकेश की बुद्धिमानी से नाटक के महत्व को बताया है । राकेश एक अच्छा नाटककार था और वो हर सप्ताह अपने नगर में नाटक प्रदर्शन किया करता था । लेकिन एक दिन राकेश फुटबॉल खेलते वक्त अचानक गिर पड़ा था जिससे उसका हाथ टूट गया , इसलिए वो आने वाले नाटक में भाग नहीं ले सकता थ और सिर्फ निर्देशन ही कर सकता था । नाटक खेलना बहुत आवश्यक था, इसके लिए गली के बच्चों ने मंच भी तैयार कर दिया था । इस वजह से उसने अपने दोस्तों को इसके लिए तैयार करा । पर वह अपने मित्रों के बुद्धूपन से डर रहा था।
राकेश ने उन्हें बहुत अच्छी तरह से रिहर्सल करवाया , उन्हें छोटी सी छोटी चीज सिखाई । नए लोग मंच पर आने से डरते हैं ये बात ध्यान में रख उस ने अपने दोस्तों की काफी मदद करी थी । नाटक का दिन आ जाता है । राकेश ने सारी व्यवस्था करी हुई थी , दर्शक भी आ चुके थे । राकेश का एक मित्र कलाकार, एक शायर एवम् एक संगीतकार बना हुआ होता है। राकेश पर्दे के पीछे से उन्हें निर्देश देते रहता । लेकिन कुछ समय बाद ही वो तीनों आपस में लड़ने लग जाते । वे तीनों खुद को एक दूसरे से बेहतर बताने लगते । कोई कहता कलाकार बेहतर है तो कोई संगीतकार । अपने को बेहतर साबित करने के लिए वे गाना गाना , शायरी पड़ना शुरू कर देते हैं और अपने दोस्त की सिखाई बातों को भूल जाते हैं । इन तीनों की आपसी असहमति से ये जनता के सामने हसी का पात्र बन जाते हैं।
सप्ताह बाद होने वाले नाटक में ठीक वही हुआ जो सोचा थे, चलते नाटक में तीनों अभिनय छोड़कर लड़ने-झगड़ने लगे। राकेश ने पर्दे के पीछे रह कर समझाने की बहुत कोशिशें की किन्तु वे उसकी बात पर ध्यान ही नहीं देते और आपस में झगड़ने में लगे रहते । राकेश पर्दे के पीछे से हर संभव प्रयास कर रहा था कि वे समझ जाएं किन्तु उसके दोस्तों ने उस पर ध्यान ही नहीं दिया और अपनी लड़ाई में लगे रहे । जब तीनों अपने पार्ट को नहीं निभा सके तो राकेश ने मंच पर आकर उस नाटक को रिहर्सल कह दिया और कहा कि बड़ा कलाकार वह है, जो दूसरों की त्रुटि को नहीं अपनी कमियों को देखे और सुधारे। राकेश की बातों से ससप्ताह बाद होने वाले नाटक में ठीक वही हुआ जो सोचा थे, चलते नाटक में तीनों अभिनय छोड़कर लड़ने-झगड़ने लगे। राकेश ने पर्दे के पीछे रह कर समझाने की बहुत कोशिशें की किन्तु वे उसकी बात पर ध्यान ही नहीं देते और आपस में झगड़ने में लगे रहते । राकेश पर्दे के पीछे से हर संभव प्रयास कर रहा था कि वे समझ जाएं किन्तु उसके दोस्तों ने उस पर ध्यान ही नहीं दिया और अपनी लड़ाई में लगे रहे । जब तीनों अपने पार्ट को नहीं निभा सके तो राकेश ने मंच पर आकर उस नाटक को रिहर्सल कह दिया और कहा कि बड़ा कलाकार वह है, जो दूसरों की त्रुटि को नहीं अपनी कमियों को देखे और सुधारे। राकेश की बातों से सभी को यह प्रतीत होता कि ये नाटक में ही नाटक है और इसके माध्यम से वो लोग नाटक में होने वाली कठिनाइयों के बारे में बताना चाह रहे हैं। उसने बुद्धिमत्ता से अपने प्रति लोगों का विश्वास भी बनाए रखा और नाटक का पर्दा भी गिर गया।भी को यह प्रतीत होता कि ये नाटक में ही नाटक है और इसके माध्यम से वो लोग नाटक में होने वाली कठिनाइयों के बारे में बताना चाह रहे हैं। उसने बुद्धिमत्ता से अपने प्रति लोगों का विश्वास भी बनाए रखा और नाटक का पर्दा भी गिर गया।
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