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1800-102-2727प्रस्तुत कविता “ओस” को “सोहनलाल द्विवेदी” जी ने रचित किया है । कवि ने कविता में ओस की बूंदों की सराहना की है । कवि कहते हैं कि जाड़े के मौसम में ये बूंदे हरे मैदान पर ऐसी लगती हैं मानो किसी ने मोती की लड़ियाँ बिछा दी हो। ओस की बूंदों को रत्न कहा है क्योंकि वह पत्तों और फूलों पर चमकती इठलाती रहती है, जैसे किसी जौहरी ने अपना खजाना लुटा दिया हो। ओस की यह बूंदें हरी घास के साथ-साथ सभी जगह बिखरी हुई हैं। कवि कहते हैं कि जब सूरज की किरणे इन ओस की बूंदों पर पड़ती हैं तो वे अशंख्य जुगनू के भांति चमकती हैं । इन्हें आसमान के तारों जैसा भी समझा जा सकता है । कवि का मानना है जैसे दिवाली के तरह किसी ने दिए जला कर रख दिए हों ।
उसके कणों को देखकर कवि का मन होता है कि वह इसे अंजुलि में भर कर ले जाएं। सीप की मोती जैसी अत्यंत सुंदर बूंद को कवि निहारना चाहते हैं । उसकी बूंदों के ऊपर कविता लिखने को कवि का मन बेकरार है, क्योंकि इस सर्दी के मौसम के बाद न जाने कब प्रकृति का ऐसा लुभावन रूप देखने को मिलेगा। कवि आसमान में सब कुछ साफ देख सकते हैं, वह इस बेहद खूबसूरत नज़ारे को आँखों से पी लेना चाहते हैं। कवि ने इन बूंदों को काव्यात्मक ढंग से दर्शाने के लिए इन्हें रतन कहा है, जो कि घास, फूल, पत्तों सभी पर बिखरकर उनकी सुंदरता बढ़ा रही हैं।
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