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1800-102-2727सन् 1922 के समय भारत अंग्रेजों की गुलामी में था। अपने लोगों को तरह तरह के अत्याचार अंग्रेजों के द्वारा झेलने पड़ते थे । पर इन लोगों का सामना करने वाले भी बहुत लोग थे । उन में से आंध्र में रहने वाले कोया आदिवासी के प्रमुख श्री राम राजू भी एक थे । कोया आदिवासी खेती से अपना जीवन सरल रूप से व्यतीत कर रहे थे किन्तु अंग्रेजों ने आकर उनके जीवन को गुलामी में परिवर्तित कर दिया । श्रीराम राजू हाई स्कूल पास कर 18 वर्ष की उम्र में साधु बन गए थे, उन्होंने कोया आदिवासियों को अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने की प्रेरणा दी थी । उन्होंने लोगों से कहा कि "अत्याचार के सामने दबना नहीं चाहिए। तुम लोगों को काम पर जाने से मना करना चाहिए।" लोगों ने राजू को अपना नेता मानना शुरू कर दिया था।
कुछ समय में विद्रोह की ऐसी आग भड़की अंग्रेजों के होश उड़ गए। आदिवासियों के मन में भरा सारा अपमान, दुख और क्रोध फूट के निकल पड़ा। आदिवासी अंग्रेज दलों को जंगल से आगे जाने नहीं देते थे एवं उनके सारे हथियार लेकर भाग जाते थे । वे सभी सिर्फ भारतीय सैनिकों को छोड़ देते थे । इन लोगों को आस पास के हर गांव का सहारा था इसलिए अंग्रेज इन्हें पकड़ नहीं पाते थे । इनसे लड़ने के लिए कोया आदिवासी संगठन के लोग जंगलों में छिपे रहते थे, पास से जब अंग्रेजी सेना गुज़रती तो उनमें से भारतीय सेना के लोगों को जाने देते थे। जैसे ही अंग्रेजी सारजेंट देखते तो उसे मार देते, पुलिस चौकियों पर हमला कर उसे लूट कर भाग जाते थे।
अंग्रेज इनसे काफी परेशान हो चुके थे । अंग्रेजों ने तंग आकर उनके राशन पानी ले जाने वाले रास्ते पर नाकाबंदी कर दी, इस कारण भूखे मरने की नौबत आ गई थी। कोया आदिवासियों को अंग्रेजों के सामने झुकना पड़ा, क्योंकि अंग्रेजों ने आदिवासियों का राशन रोक दिया था। धीरे धीरे कर इन लोगों की हिम्मत खत्म होने लगी थी । कई लोग तो जेल भी जा चुके थे । आदिवासियों पर कहर टूटता देखकर राजू ने अपने लोगों की तकलीफों का अंत करने के लिए आत्मसमर्पण कर दिया। राजू कानून के द्वारा सजा पाना चाहता थे किंतु उसका अंत वहीं कर दिया गया । पराधीनता के विरुद्ध लड़ाई से अंग्रेज़ों को सीख मिली कि वह लोग किसी की स्वतंत्रता नहीं छीन सकते।अपने देश के इतिहास में कोया आदिवासियों के अन्याय के खिलाफ लड़ाई को ये देश कभी नहीं भूला सकता ।
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