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1800-102-2727भारत में अगस्त सन 1942 में जो हुआ वो लोगों के अंदर छुपी तीव्र भावना थी कि अंग्रेजी राज अब भारत बर्दाश्त नहीं करेगा। वह पहले से होते आ रहे जुल्म का चरम था। इसके बारे में आक्षेप, आलोचना और बहुत सफाई दी गई थी। नेताओं की गिरफ्तारी और उसके बाद होने वाले गोलीकांड से जनता के अंदर फूट रहा आक्रोश सामने आया था। ये तीव्र भावना ने अचानक प्रदर्शन, विस्फोट और हिंसात्मक तोड़–फोड़ के रूप में सामने आने लगी। वो चुप नहीं रहना चाहते थे, स्थानीय नेता भी सामने आए परंतु उनके निर्देश काफ़ी नहीं थे। तब युवा पीढ़ी, खास कर विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने हिंसक और शांतिपूर्ण दोनों तरह की कार्यवाहियों में बढ़ कर हिस्सा लिया था।
ब्रिटिश सरकार के लिए यह स्थिति अनजान थी और एक बहुत बड़ी चुनौती थी। बहुत बड़ी जनसंख्या खड़ी हुई, जिसके विरुद्ध हथियारबंद सैनिक थे। इस तत्कालीन आंदोलन ने भारत की आजादी के लिए लोगों के मन में विदेशी शासन के लिए अपनी घृणा को प्रकट किया था। सन 1942 में पुलिस और सेना की गोलीबारी में 1028 लोग मारे गए, 3200 घायल हुए थे। जनता के अनुसार ये आंकड़े 25,000 के आस–पास था। कई शहरी और ग्रामीण इलाकों में ब्रिटिश शासन खत्म हो गया था । जिसे दोबारा पाने में उन्हें समय लगा।
इस लड़ाई के बाद भारत तन, मन और धन से कमज़ोर हो गया था। दूर-दूर तक अकाल का प्रभाव था। ब्रिटिश राज के इतिहास में यह सबसे बड़ा और विनाशकारी अकाल था। इसके बाद भारत में मलेरिया और हैजा जैसी महामारी फैली जो आज तक हजारों की संख्या में लोगों को अपना शिकार बनाती हैं । यह सब होते हुए भी कलकत्ता के ऊपरी समाज के लोगों में कोई परिवर्तन नहीं आया था। उनका जीवन उल्लास से भरा हुआ था। देश में कुछ बहुत धनी है और कुछ बहुत निर्धन, यह कलकत्ता जैसे शहरों में दिखाई देता था। ये बुनियादी नीति भारत को और गरीब बनाती जा रही थी। यदि ब्रिटिश अब जाएंगे तो अपने पीछे क्या छोड़ के जायेंगे? अकाल और भयानक युद्ध के बावजूद हमने अपने अतीत को फूलों से ढक दिया था। आज़ादी के पश्चात, भारत के मजबूत लोगों ने मशाल को आगे लेकर गुलामी को हमारे लिए अतीत में छोड़ा है।
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