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1800-102-2727प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने उन लोगों की चर्चा की है, जो कभी प्रसिद्धि का स्वाद नहीं चखते फिर भी निरंतर कार्य करते चले जाते हैं। उन्हें कभी उनके काम के लिए तारीफ़ सुनने को नहीं मिलती, वे हमेशा अंधकार में जीते हैं, फिर भी वे बिना किसी स्वार्थ के निरंतर अपना काम करते चले जाते हैं। जिस तरह किसी गायक के साथ गाने वाले संगीतकार होते हैं और सभी लोग गायक को जानते हैं, उसकी तारीफ़ करते हैं, परन्तु कोई यह नहीं जानता कि उसके साथ कितने संगतकार हैं। जो बिना किसी स्वार्थ के उसकी आवाज़ को दुर्बल नहीं होने देते, जब-जब गायक की आवाज लड़खड़ाने लगती है, तब-तब संगतकार अपनी आवाज़ से गायक की आवाज़ को बाँध लेते हैं और उसे बिखरने नहीं देते। कभी-कभी तो उन्हें जान-बूझ कर ख़राब गाना पड़ता है कि कहीं उनकी आवाज़ गायक से अच्छी न हो जाए। वह ऐसा सिर्फ इसलिए करता है क्योंकि मुख्य गायक की प्रसिद्धि में कोई कमी ना आए। जबकि उसे कोई खुद नहीं पहचानता न ही उसे मान सम्मान मिलता है। फिर भी वह निरंतर बिना किसी स्वार्थ के अपना काम करता रहता है।
मंगलेश डबराल समकालीन हिन्दी कवियों में सबसे चर्चित नाम है। इनका जन्म 16 मई 1948 को टिहरी गढ़वाल, उत्तराखण्ड के काफलपानी गाँव में हुआ था। इनकी शिक्षा-दीक्षा देहरादून में हुई तथा इनके पाँच काव्य संग्रह प्रकाशित हुए हैं- पहाड़ पर लालटेन, घर का रास्ता, हम जो देखते हैं, आवाज भी एक जगह है और नये युग में शत्रु। इनकी रचनाओं के लिए इन्हें कई पुरस्कारों, जैसे साहित्य अकादमी, कुमार विकल स्मृति पुरस्कार एवं दिल्ली हिन्दी अकादमी के साहित्यकार सम्मान से इन्हें सम्मानित किया गया है। कविता के अतिरिक्त वे साहित्य, सिनेमा, संचार माध्यम और संस्कृति के विषयों पर भी लेखन करते हैं। उनका सौंदर्य-बोध सूक्ष्म और भाषा पारदर्शी है।
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