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NCERT Solutions for Class 10 हिंदी क्षितिज गद्य खंड पाठ 10: नेताजी का चश्मा

नेताजी का चश्मा, कहानी कैप्टन चश्मे वाले के माध्यम से देश के करोड़ों नागरिकों के योगदान को रेखांकित करती हैं, जो इस देश के निर्माण में अपने-अपने तरीके से सहयोग करते हैं। कहानी हालदार साहब से शुरू होती है, जिन्हें हर 15 दिन में कंपनी के काम से एक छोटे कस्बे से गुजरना पड़ता था। वहाँ की नगर पालिका के एक उत्साही अधिकारी ने मुख्य बाजार के चौराहे पर सुभाष चंद्र बोस की संगमरमर की प्रतिमा लगवा दी। मूर्ति बहुत सुंदर होने के साथ-साथ अलग भी थी। नेताजी की आंख पर सचमुच का चौड़े काले फ्रेम का चश्मा था। हालदार साहब जब भी वहाँ से गुजरते तो हमेशा मूर्ति पर अलग-अलग फ्रेम देखते।

एक बार उन्होंने पान वाले से पूछा कि नेताजी का चश्मा हरदम बदल कैसे जाता है, उन्हें मालूम पड़ता है कि कैप्टन चश्मे वाला अपने उपलब्ध फ्रेम में से एक नेताजी की मूर्ति पर फिट कर देता है। 2 साल के भीतर हालदार साहब ने नेता जी की मूर्ति पर कई चश्मे लगते हुए देखें। एक बार हालदार साहब कस्बे से गुजर रहे थे, तो मूर्ति पर कोई चश्मा नहीं था पूछने पर पता चला कि कैप्टन मर गया। ये सुनकर उन्हें एक देशभक्त के जाने पर बहुत दुख हुआ। 15 दिन बाद जब वह कस्बे से गुजरे तो सोचा कि अब कोई चश्मा देखने को नहीं मिलेगा परंतु आदत से मजबूर हालदार साहब की नजर चौराहे पर आते ही आंखें मूर्ति की और उठ गई। उन्होंने देखा की मूर्ति की आंखों पर सरकंडे से बना हुआ छोटा सा चश्मा रखा था, जैसे बच्चे बना लेते हैं। बच्चे का देश पर कुर्बान वीरों और देश के प्रति भक्ति की इस भावना को देखकर हालदार साहब की आंखें नम हो गईं।

लेखक का जन्म सन् 1947 में इंदौर (मध्य प्रदेश) में हुआ। मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर एक औद्योगिक प्रतिष्ठान में नौकरी करने वाले स्वयं प्रकाश का बचपन और नौकरी का बड़ा हिस्सा राजस्थान में बिता। फिलहाल वह स्वैच्छिक सेवानिवृत्त के बाद वे भोपाल में रहते हैं और वसुधा संपादन से जुड़े हैं। स्वयं प्रकाश जी की 13 कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें सूरज कब निकलेगा, आएंगे अच्छे दिन भी, आदमी जात का आदमी जैसे प्रमुख कार्यों के साथ उन्होंने बीच में विनय और ईंधन नाम से एक उपन्यास भी लिखा। मध्यवर्गीय जीवन के कुशल चित्रकार स्वयं प्रकाश की कहानियां में वर्ग-शोषण के विरुद्ध चेतना है तो वहीं हमारे सामाजिक जीवन में जाति ,संप्रदाय और लिंग के आधार पर हो रहे भेदभावों के खिलाफ प्रतिकार का स्वर भी है।

 

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