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1800-102-2727पिता भोलानाथ बच्चों को अपने साथ ही सुलाते, सुबह उठाते और नहलाते थे। वे पूजा के समय उसे अपने पास बिठाकर शंकर जी जैसा तिलक लगाते जो लेखक को खुशी देता था। पूजा के बाद पिता जी उन्हें कंधे पर बिठाकर गंगा में मछलियों को दाना खिलाने के लिए ले जाते थे और राम नाम लिखी पर्चियों में लिपटी आटे की गोलियाँ गंगा में डालकर लौटते हुए रास्ते में पड़ने वाले पेड़ों की डालों पर झुलाते। घर आकर बाबूजी उन्हें चौके पर बिठाकर अपने हाथों से खाना खिलाया करते थे। मना करने पर उनकी माँ बड़े प्यार से तोता, मैना, कबूतर, हँस, मोर आदि के बनावटी नाम से टुकड़े बनाकर उन्हें खिलाती थीं।
खाना खाकर बाहर जाते हुए, माँ उन्हें झपटकर पकड़ लेती थीं और रोते रहने के बाद भी बालों में तेल डाल कंघी कर देतीं। कुर्ता-टोपी पहनाकर चोटी गूंथकर फूलदार लट्टू लगा देती थीं लेखक रोते-रोते बाबूजी की गोद में बाहर आते, बाहर आते ही वे बालकों के झुंड के साथ मौज-मस्ती में डूब जाते थे। वे चबूतरे पर बैठकर तमाशे और नाटक किया करते थे, मिठाइयों की दुकान लगाया करते थे।
एक बार रास्ते में आते हुए लड़कों की टोली ने मूसन तिवारी को बेईमान कहकर चिढ़ा दिया। मूसन तिवारी पाठशाला पहुँच गए, अध्यापक ने लेखक की खूब पिटाई की। यह सुनकर पिताजी पाठशाला दौड़े आए अध्यापक से विनती कर पिताजी उन्हें घर ले आए।
कहानी में लेखक की शरारतें बताते हुए बताया गया है कि मित्र मंडली के साथ मिलकर लेखक खेतों में चिड़ियों को पकड़ने की कोशिश किया करते थे। चिड़ियों के उड़ जाने पर जब एक टीले पर आगे बढ़कर चूहे के बिल में उसने आस-पास का भरा पानी डाला, तो उसमें से एक साँप निकल आया था। डर के मारे लुढ़ककर गिरते-पड़ते हुए लेखक जब घर पहुँचे तो सामने पिता बैठे थे परन्तु लेखक को अंदर जाकर माँ से लिपटने में अधिक सुरक्षा महसूस हुई। माँ ने घबराते हुए आँचल से उसकी धूल साफ़ की और हल्दी लगाई।
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