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1800-102-2727पाठ में लेखक बताते हैं कि फादर बुल्के का जन्म बेल्जियम के रेम्स चैपल में हुआ था। उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ने के बाद पादरी बनने की विधिवत शिक्षा ली। वह भारतीय संस्कृति के प्रभाव में आकर भारत आ गए, जहाँ उन्होंने जिसेट संघ में 2 साल तक पादरियों के बीच में रहकर धर्म प्रचार की शिक्षा प्राप्त की। नौ-दस वर्ष दार्जिलिंग में रहकर अध्ययन कार्य किया, कोलकाता में रहते हुए बी.ए. तथा इलाहाबाद से एम.ए. की परीक्षाएं उत्तीर्ण की। हिंदी से उनका अत्यधिक लगाव रहा। उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग से सन् 1950 में शोध प्रबंध, रामकथा: उत्पत्ति और विकास लिखा।
बाइबल का हिंदी अनुवाद किया तथा एक हिंदी-अंग्रेजी कोश भी तैयार किया। लेखक का परिचय बुल्के से इलाहाबाद में हुआ जो दिल्ली आने पर भी बना रहा। उनके महान व्यक्तित्व से लेखक बहुत प्रभावित थे जिससे उनके पारिवारिक संबंध बन गए थे। लेखक के पत्नी और बेटे की मृत्यु पर बुल्के द्वारा सांत्वना देती हुई पंक्ति ने लेखक को अनोखी शांति प्रदान की। फादर बुल्के की मृत्यु दिल्ली में जहरबाद से पीड़ित होकर हुई। अंतिम समय में उनकी दोनों हाथ की उंगलियां सूज गई थी। दिल्ली में रहकर भी लेखक को उनकी बीमारी और उपस्थिति का ज्ञान ना होने से अफसोस हुआ।
18 अगस्त,1982 की सुबह 10:00 बजे कश्मीरी गेट निकलसन कब्रगाह में उनका ताबूत एक नीली गाड़ी से परिजन राजेश्वर सिंह और कुछ पादरियों ने उतारा और अंतिम छोर पर पेड़ों की घनी छाया से ढके कब्र तक ले जाया गया। वहां उपस्थित लोगों में इलाहाबाद के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ सत्यप्रकाश, डॉक्टर रघुवंश, मसीही समुदाय के लोग और पादरी गण थे। फादर बुल्के के मृत शरीर पर सबने श्रद्धांजलि अर्पित की। लेखक के अनुसार फादर ने सभी को जीवन भर अमृत पिलाया, फिर भी ईश्वर ने उन्हें जहरबाद द्वारा मृत्यु देकर अन्याय किया। लेखक फादर को ऐसे सघन वृक्ष की उपमा देता है जो अपनी घनी छाया, फल-फूल और गंध से सबका होने के बाद भी अलग और सर्वश्रेष्ठ था।
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्म 1927 में जिला बस्ती उत्तर प्रदेश में हुआ, इनकी उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हुई। इनके प्रमुख कार्यों में कहानी संग्रह- लड़ाई, नाटक- बकरी और लेख संग्रह- चर्चे और चरखे जैसे अन्य मशहूर लेखन शामिल है। सन् 1983 में इनका आकस्मिक निधन हो गया।
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