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1800-102-2727कुछ लोग गांधीजी को प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट कहते हैं। वे व्यावहारिकता के महत्व को जानते थे इसलिए वे अपने विलक्षण आदर्श को चला सके, वरना ये देश उनके पीछे कभी न जाता। वे सोने में तांबा मिलाकर नहीं बल्कि तांबे में सोना मिलाकर उसकी कीमत बढ़ाते थे इसलिए सोना ही हमेशा आगे रहता।
व्यवहारवादी लोग हमेशा सजग रहते हैं, हर काम लाभ-हानि का हिसाब लगाकर करते हैं। वे जीवन में सफल होते हैं। दूसरों से आगे भी जाते हैं परन्तु ऊपर नहीं चढ़ पाते। खुद ऊपर चढ़ें और साथ में दूसरों को भी ऊपर ले चलें यह काम सिर्फ आदर्शवादी लोगों ने ही किया है।
झेन की देन
लेखक जापान की यात्रा पर गए हुए थे। वहाँ उन्होंने अपने एक मित्र से पूछा कि यहाँ के लोगों को कौन-सी बीमारियां सबसे अधिक होती हैं, इसपर उनके मित्र ने जवाब दिया मानसिक। महीने का काम एक दिन में पूरा करने का प्रयास करते हैं एक क्षण ऐसा आता है जब दिमाग का तनाव बढ़ जाता है।
शाम को जापानी मित्र उन्हें 'टी-सेरेमनी' में ले गए, बेढब-सा एक मिटटी का बरतन था जिसमे पानी भरा हुआ था जिससे उन्होंने हाथ-पाँव धोए और तौलिये से पोंछ कर अंदर गए। अंदर बैठे 'चाजीन' ने उठकर उन्हें झुककर प्रणाम किया उसने अँगीठी सुलगाकर उस पर चायदानी रखी फिर बगल के कमरे से जाकर बरतन ले आया और उसे तौलिये से साफ़ किया।
चाय तैयार हुई और चाजीन ने चाय को प्यालों में भरा। प्याले में दो घूँट से ज्यादा चाय नहीं थी चाय पीते-पीते लेखक के दिमाग से दोनों काल हट गए थे। बस वर्तमान क्षण सामने था जो की अनंत काल जितना विस्तृत था असल में जीना किसे कहते हैं लेखक को उस दिन मालूम हुआ।
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