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1800-102-2727जब राज कपूर की फिल्म संगम सफल रही तो उसने उनमें गहन आत्मविश्वास भर दिया जिस कारण उन्होंने एक साथ चार फिल्मों ‘मेरा नाम जोकर', 'अजंता', 'मैं और मेरा दोस्त’, ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ के निर्माण की घोषणा की। परन्तु जब 1965 में उन्होंने ‘मेरा नाम जोकर' का निर्माण शुरू किया तो इसके एक भाग के निर्माण में छह वर्ष लग गए। इन छह वर्षों के बीच उनके द्वारा अभिनीत कई फ़िल्में प्रदर्शित हुई जिनमें सन् 1966 में प्रदर्शित कवि शैलेन्द्र की तीसरी कसम' फिल्म भी शामिल है, यह फिल्म नहीं बल्कि सैल्यूलाइड पर लिखी कविता थी।
इस फिल्म में शैलेन्द्र ने अपनी संवेदनशीलता को अच्छी तरह से दिखाया है और राज कपूर का अभिनय भी उतना ही अच्छा है। इस फिल्म के लिए राज कपूर ने शैलेन्द्र से केवल एक रुपया लिया। महान फिल्म होने पर भी तीसरी कसम को प्रदर्शित करने के लिए बहुत मुश्किल से वितरक मिले। बावजूद इसके कि फिल्म में राजकपूर और वहीदा रहमान जैसे सितारे थे, शंकर जय किशन का संगीत था, फिल्म को खरीदने वाला कोई नहीं था क्योंकि फिल्म की संवेदना आसानी से समझ आने वाली न थी। इसलिए फिल्म का प्रचार भी कम हुआ और यह कब आई और गई पता भी ना चला।
शैलेन्द्र बीस सालों से इंडस्ट्री में थे और उन्हें वहाँ के तौर तरीके भी मालूम थे परन्तु वे इनमें उलझकर अपनी आदमियत नहीं खो सकते थे। शैलेन्द्र ने झूठे अभिजात्य को कभी नहीं अपनाया, 'तीसरी कसम' फिल्म उन चुनिंदा फिल्मों में से है जिसने साहित्य-रचना से शत-प्रतिशत न्याय किया है। यह फिल्म वास्तविक दुनिया का पूरा स्पर्श कराती है।
अभिनय की दृष्टि से यह राज कपूर की जिंदगी की सबसे हसीन फिल्म है। 'तीसरी कसम' में राज कपूर ने जो अभिनय किया है वो उन्होंने 'जागते रहो' फ़िल्म में भी नहीं किया। इस फ़िल्म में ऐसा लगता है मानो राज कपूर अभिनय नहीं कर रहे हैं, वह हीरामन ही बन गये हैं।
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