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1800-102-2727लेखक प्रेमचंद ने इस पाठ में अपने बड़े भाई के बारे में बताया है जो कि उम्र में उनसे पाँच साल बड़े थे परन्तु पढाई में केवल तीन कक्षा आगे।
लेखक का मन पढ़ाई में बिलकुल नहीं लगता, अवसर पाते ही वो हॉस्टल से निकलकर मैदान में खेलने आ जाते। उनके भाई लेखक को डाँटते हुए कहते कि पढ़ाई इतनी आसान नहीं है अगर तुम्हें इसी तरह खेलकर अपना समय गँवाना है, तो बेहतर है कि घर चले जाओ और गिल्ली डंडा खेलो। इतनी फटकार के बाद भी लेखक खेल में शामिल होते थे।
सालाना परीक्षा में बड़े भाई फिर फेल हो गए और लेखक अपनी कक्षा में प्रथम आये, उन दोनों के बीच अब दो कक्षा की दूरी रह गयी। एक दिन लेखक भोर का सारा समय खेल में बिताकर लौटे तब भाई साहब ने उन्हें जमकर डांटा, निबंध लेखन को उन्होंने समय की बर्बादी बताया और कहा की परीक्षा में उत्तीर्ण करने के लिए मेहनत करनी पड़ती है, इतना सुनने के बाद भी लेखक की अरुचि पढ़ाई में बनी रही।
फिर सालाना परीक्षा में बड़े भाई फेल हो गए और लेखक पास, अब उनके बीच केवल एक दर्जे का अंतर रह गया। लेखक को लगा यह उनके उपदेशों का ही असर है की वे दनादन पास हो जाते हैं अब लेखक में मन में यह धारणा बन गयी की वह पढ़े या न पढ़े वे पास हो जायेंगे। बड़े भाई ने लेखक को तजुर्बे का महत्व स्पष्ट करते हुए कहा कि भले ही तुम मेरे से कक्षा में कितने भी आगे निकल जाओ फिर भी मेरा तजुर्बा तुमसे ज्यादा रहेगा। इन बातों को सुनकर लेखक उनके आगे नतमस्तक हो गए और उन्हें अपनी लघुता का अनुभव हुआ, इतने में ही एक कनकौआ उन लोगों के ऊपर से गुजरा। चूंकि बड़े भाई लम्बे थे इसलिए उन्होंने पतंग की डोर पकड़ ली और होस्टल की तरफ दौड़ कर भागे, लेखक भी उनके पीछे-पीछे भागे जा रहे थे।
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