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1800-102-2727इस पाठ के दोहे रहीम जी द्वारा लिखित हैं। उन्होंने अपने दोहों में धर्म जाति के बन्धनों को तोड़कर मिलजुल कर रहने की सीख दी है। उन्होंने कहा है कि हमें किसी से भी बैर नहीं रखना चाहिए । सभी को एक समान प्रेम और सम्मान देना चाहिए। वे कहते हैं कि हम सभी लोग एक दूसरे से प्रेम के धागों से बंधे होते हैं और यह धागा बहुत ही नाजुक होता है । इसे ज्यादा खींचना नहीं चाहिए , क्योंकि कभी-कभी जल्दबाजी में यह टूट जाता है, जिससे इसमें गांठ पड़ जाती है और उस कारण रिश्तों में भी दूरियां आ जाती हैं।
वे कहते हैं कि हमें अपने दुख को अपने मन में ही समा के रखना चाहिए क्योंकि दुख बांटने से हल्का नहीं होता है बल्कि कुछ लोग आपके दुख का मजाक भी उड़ा देते हैं। मिलजुल कर काम करने से काम जल्दी खत्म होता है और उसका फल भी सकारात्मक व मीठा होता है। आगे उन्होंने दोहों की सार्थकता के बारे में बताया है। वे कहते हैं कि यदि कोई अच्छा दोहाकार दोहा लिखता है तो उसके एक दोहे में भी हजारों शब्द छिपे होते हैं और उनके अर्थ जब किसी व्यक्ति को मालूम हो जाते हैं तो उस व्यक्ति का जीवन बदल जाता है।
उनको अपनाने से वह महान बन जाता है। रहीम जी ने इसी तरह कई सारे दोहों को लिखा है और वास्तव में उनके सभी दोहों में अर्थ का भंडार छिपा है, जो कि एक साधारण मनुष्य के जीवन को भी श्रेष्ठता से भर सकते हैं। रहीम जी धर्म से मुस्लिम थे लेकिन उन्होंने कभी भी किसी जाति विशेष को लेकर न तो कोई टिप्पणी की और ना ही किसी भी धर्म के लोगों का मजाक उड़ाया। उन्होंने अपनी लेखनी की कला का सार्थक प्रयोग किया है।
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