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1800-102-2727इन पदों में रैदास जी ने अपने आराध्य ईश्वर से बातचीत की है। वे कहते हैं कि हे ईश्वर! मेरे मन में तो आपके नाम की रट लग चुकी है अर्थात मेरे तन मन में आप ही बसे हुए हो और मेरे शरीर में आपके ही गुणों का संचार हो रहा है। जिस प्रकार चंदन को पानी में घोलते हैं तो पानी की खुशबू नष्ट हो जाती है और वह चंदन में ही खो जाता है, ठीक उसी तरह मेरा मन भी आप में लग गया है और मैं अकेला कुछ भी नहीं रह गया । कवि आगे कहते है कि वे और उनके ईश्वर एक दूसरे के पूरक है। जैसे दीपक के साथ बाती होती है , दिन के बाद रात होती है , ठीक उसी तरह रविदास जी के आराध्य का अपने संत स्वयं रविदास जी से मिलन हो जाए तो इससे अच्छी बात तो उनके जीवन में कोई हो ही नहीं सकती।
कवि ने अपने दूसरे पद में भी ईश्वर को ही संबोधित करते हुए कहते हैं कि- इस पूरे संसार में आपके जितना दयावान कोई नहीं है ,आप बड़े ही कृपालु हैं जो संसार के कोने-कोने में रहने वाले दीन-दुखी असहाय सभी लोगों की मदद करते हैं और उन पर सदैव अपनी कृपा बनाए रखते हैं। आप सर्वव्यापी हैं। आप ही तो वह अमर शक्ति हैं जिनकी नजरों में ना तो कोई छोटा होता है और ना कोई बड़ा । आप अपनी दृष्टि सब पर बनाए रखते हैं। आपकी कृपा राजा, व्यापारी और गरीब सभी पर समान होती है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण तो कबीर दास जी हैं जिन्हें आपकी कृपा से ही संसार में इतनी ख्याति प्राप्त हुई है।
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