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1800-102-2727यह पाठ बछेंद्री पाल की एवरेस्ट की यात्रा पर आधारित है। इस पाठ में उनकी यात्रा से जुड़ी विशेष जानकारियाँ समाहित हैं। सबसे पहले वह 7 मार्च को अपने समूह के साथ हवाई जहाज द्वारा दिल्ली से काठमांडू के लिए रवाना हुई थी। ज्यादातर लोग अपनी एवरेस्ट की यात्रा नमचे बाजार से शुरू करते हैं । यही वह स्थान है, जहां से पहली बार बछेंद्री पाल जी ने एवरेस्ट को निहारा था ।
सफर बहुत ही मुश्किल था , यह सभी को पता था। लेकिन सफर शुरू होते ही सभी को एक बड़ा झटका लगा। उनके दल की एक यात्री अपनी यात्रा की शुरुआत में ही इस दुनिया को अलविदा कह दिया। 26 मार्च को वे लोग पैरिच पहुंचे और वहाँ पर दल के उप नेता प्रेमचंद ने बताया कि आगे बर्फ बहुत तेजी से गिर रही है। अब तक वे एवरेस्ट को दो बार निहार चुकी थीं, लेकिन दूरी से हिमपात और बढ़ता ही जा रहा था । उनके दल को यह सूचना मिली कि अक्सर ग्लेशियर के फट जाने से ऐसी स्थिति अपने आप ही पैदा हो जाती है। अब तक की यात्रा में 9 पुरुष सदस्यों को गंभीर चोटें आ चुकी थीं और उनकी हड्डी भी टूट चुकी थी।
जब नायक ने बछेंद्री पाल से लौटने को कहा तो उन्होंने सीधे मना कर दिया था। अगले दिन वे अपने दृढ़ निश्चय के साथ हल्का फुल्का नाश्ता करके एवरेस्ट फतह करने के लिए निकल गईं और बिना किसी बात की परवाह किए उन्होंने एवरेस्ट को जीत लिया। इस बात की खबर उन्होंने वॉकी टॉकी से अपने कर्नल को दी, कर्नल ने उन्हें बधाई दी एवं कहा कि वे इस बात की सूचना उनके माता-पिता तक पहुँचा देंगे।
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