Call Now
1800-102-2727इस कविता को रामधारी सिंह दिनकर जी ने लिखा है। इस कविता के माध्यम से उन्होंने बताया है कि प्रकृति में रहने वाले सभी लोग अपने जीवन में दुख और सुख का समान तरीके से अनुभव करते हैं । फिर चाहे वह पेड़ पौधे हों या जीव-जंतु । सभी को अपने जीवन में सुख के साथ-साथ दुख से भी गुजरना पड़ता है।कवि कहते हैं कि नदी अपनी धारा में बहती जा रही है और अपने दुख को धारा की बहती आवाज में सबको सुनाती जा रही है।
उसी नदी के बीच में एक गुलाब का पेड़ भी खड़ा है , जो नदी की बहती धारा की आवाज को सुनकर कह रहा है कि अगर वह भी कुछ बोल पाता तो वह भी अपने पतझड़ में सहने वाले दुख का गीत अवश्य गाकर सुनाता। इसी कड़ी में जंगल के पेड़ पर बैठा तोता बहुत ही मधुर ध्वनि के साथ अपना गीत गा रहा है, पास में ही उसकी प्रेमिका मादा तोता एक घोसले में बैठी अपनी अंडों को देख रही है, वह भी नर तोते को देखकर खुद गाना चाहती है।
परंतु नर तोते की आवाज पूरी जंगल में गूंज रही है और उसकी आवाज़ की ख्याति को देखकर वह बहुत प्रसन्न हो रही है। वह मन ही मन बहुत खुश हो रही है और अपने प्रेमी के गीत को सुनकर बहुत ही मीठे भावनाओं व विचारों में खो गयी है। पर मन में यह भी सोच रही कि क्यों वो अपने प्रेमी के साथ गीत नहीं गा सकती। यह गीत प्रकृति में रहने वाले सभी जीव-जंतुओं के गीत-अगीत की गाथा है।
Talk to our expert