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1800-102-2727राजेश जोशी द्वारा रचित कविता ‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’ में कवि ने समाज के अन्यायपूर्ण व्यवस्था और बालश्रम जैसे मुद्दे पर प्रकाश डालने का प्रयास किया है। सर्दियों की सुबह में कोहरे से ठिठुरती सड़कों पर बच्चे मजदूरी करने निकल पड़े हैं। इन बच्चों से इनके खेलने-कूदने व पढ़ने-लिखने के दिन छीनकर इन्हें अपनी रोटी की व्यवस्था करने भेज दिया गया है। कवि के अनुसार यह हमारे लिए बड़ी शर्मनाक बात है, और इस मुद्दे पर सिर्फ एक कविता लिखना काफ़ी नहीं है।
समाज से यह प्रश्न पूछा जाना चाहिए कि आखिर बच्चे काम पर क्यों जा रहे हैं? बच्चों का काम पर जाना गैरकानूनी है। उनके अधिकारों का इस प्रकार हनन होना कवि को अंदर से खाए जा रहा है। बच्चों के प्रति अपनी सहानुभूति जताते हुए कवि समाज से प्रश्न पूछते हैं कि बच्चों की इस दुर्दशा का क्या कारण है? क्या सारी गेंदें अंतरिक्ष में चली गई हैं? या सारी किताबों को दीमकों ने खा लिया है? क्या बच्चों के सारे खिलौने पहाड़ के नीचे दब गए हैं? सभी स्कूलों की इमारतें किसी भूकंप में ढह गई हैं? या बच्चों के खेलने के लिए कोई मैदान, बगीचा, घरों के आंगन अब नहीं बचे हैं?
इस कविता के माध्यम से कवि समाज में जागरूकता लाकर बच्चों का बचपन सुरक्षित करना चाहते हैं, वे बच्चों को काम पर जाते देख अत्यंत दुखी होते हैं। बच्चों के मनोरंजन और पढ़ाई की सारी चीजें होने पर भी उन्हें हजारों सड़कों से गुजरते हुए काम पर जाना पड़ रहा है। वह चाहें या ना चाहें किंतु मजबूरी उन्हें जबरदस्ती उस ओर खींचे जा रही है।
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