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1800-102-2727'चंद्रकांत देवताले' द्वारा रचित 'यमराज की दिशा' में कवि कहते हैं कि वह नहीं जानते कि उनकी माँ की ईश्वर से मुलाकात हुई है या नहीं। किंतु माँ की सलाह सुनकर उन्हें लगता है जैसे ईश्वर से उनकी बातचीत होती रहती है। वह जिंदगी जीने का सही रास्ता बताती हैं। माँ ने कवि से कहा था कि दक्षिण की तरफ पैर करके नहीं सोना चाहिए क्योंकि वह मृत्यु की दिशा है उस दिशा में यमराज रहते हैं, यमराज को क्रोधित करना बुद्धिमानी की बात नहीं है। कवि तब छोटे थे उन्होंने माँ से यमराज का पता पूछा तो माँ ने बताया कि दक्षिण दिशा में यमराज रहते हैं।
माँ के समझाने के बाद कवि दक्षिण दिशा की ओर पैर करके कभी नहीं सोए। कवि व्यंग्य करके बोलते हैं कि इससे यह फायदा ज़रूर हुआ कि उन्हें दक्षिण दिशा पहचानने में कभी मुश्किल नहीं हुई, वे दक्षिण दिशा में दूर-दूर तक गए जब भी वे वहाँ जाते थे उन्हें हमेशा माँ की याद आई। दक्षिण दिशा को पार करना उसके अंतिम छोर तक पहुंच पाना शायद असंभव है वरना कवि यमराज का घर देख लेते।
कवि ने तात्कालिक समाज में हो रहे अत्याचारों व समाज की स्थिति की तुलना यमराज की दिशा से की है। आज हर दिशा दक्षिण दिशा है, सारी दिशाओं में यमराज रहते हैं, चारों ओर पूंजीपति हैं, उनकी दहकती हुई आंखें कवि को सोने नहीं देती। अब माँ नहीं है, और यमराज की वह दिशा अब वह नहीं रही जो माँ बताती थीं।
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