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1800-102-2727'सर्वेश्वर दयाल सक्सेना' द्वारा रचित कविता 'मेघ आए' में कवि ने बादलों को अतिथि के रूप में दर्शाया है। सज-धज कर आ रहे बादलों के आने की खुशी में हवा, बच्चों की तरह उनके आगे-आगे दौड़ती आ रही है। यह सुनकर सभी लोग उसे देखने के लिए अपनी खिड़की-दरवाजे खोलकर झांक रहे हैं। लोग वर्षा आने का आनंद लेने लगते हैं। कवि ने वर्षा आने पर वातावरण में आने वाले परिवर्तनों को दिखाया है। हवा से हिल रहे पेड़-पौधे मानो अपनी गर्दन उचकाकर बादलों को देखने का प्रयास कर रहे हैं। वहीं नदी रूपी औरतें घूंघट सरका कर मेघ रूपी अतिथि को देख रही हैं।
जिस तरफ घर के बड़े-बुजुर्ग अपने दामाद का स्वागत करते हैं, कविता में उसी तरह पीपल का बूढ़ा वृक्ष हवाओं से झुक कर मेघों का स्वागत कर रहा है। उसकी व्याकुल लताएं जैसे दरवाजे की आड़ में से मेघ से शिकायत कर रही हैं कि उन्होंने आने में बड़ी देर कर दी। वह कब से उनकी प्रतीक्षा में प्यासे बैठे हैं मेघों के आने से तालाब हर्षित होकर उनके चरण धोने के लिए मचल रहा है।
अभी लता रूपी प्रेमिका को यकीन नहीं है कि वर्षा होगी किंतु जब वह आसमान में चमकती बिजली देखती है तो उसका भ्रम टूट जाता है। अपने प्रेमी मेघों से मिलने की अपार खुशी आंखों में आंसू ला देती है। बादलों से ढके आसमान में जल बरसने लगता है, कवि कहते हैं कि बरसते हुए बादल अत्यंत सुंदर लग रहे हैं।
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