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1800-102-2727कवि 'केदारनाथ अग्रवाल' जी ने गांव के प्राकृतिक सौंदर्य का बड़ा ही मनोहर वर्णन किया है। वे चंद्र गहना नामक गांव घूमने गए हुए थे और वापस जाते वक्त उन्हें रास्ते में एक खेत दिखता है। अभी उनकी ट्रेन आने में भी बहुत वक्त था, इसलिए वो खेत की प्राकृतिक सुंदरता निहारने के लिए एक मेड़ पर बैठकर खेतों में उगी फ़सलों तथा पेड़-पौधों को देखने लगते हैं। कवि केदारनाथ अग्रवाल जी अपनी कविता में नदी के तट पर भोजन ढूंढ रहे बगुले के साथ-साथ उस पक्षी का भी बहुत ही सुन्दर वर्णन करते हैं, जो नदी में गोता लगाकर अपना भोजन प्राप्त करता है।
कवि ने खेतों के प्राकृतिक सौंदर्य की तुलना विवाह के मंडप से की है। खेतों में चने और अलसी के पौधे के बीच सरसों की बात ही निराली है। सरसों के पौधों पर पीले रंग के फूल खिल चुके हैं, ये पीले पुष्प सूर्य की रोशनी में किसी नयी दुल्हन के हाथों की तरह चमक रहे हैं। सरसों की फसल पक चुकी है इसलिए कवि कहते हैं कि कन्या शादी के लायक हो चुकी है और अपने हाथ पीले करके इस खेत-रूपी ब्याह मंडप में पधारी है। ऐसा लग रहा है, जैसे फागुन का महीना स्वयं फाग (होली के समय गाया जाने वाला गीत) गा रहा है।
उनके जाने का समय हो जाता है, उनकी ट्रेन आने वाली है। उन्हें इस बात का बहुत दुःख होता है कि उन्हें इस प्राकृतिक सौंदर्य से भरे गांव को छोड़कर फिर से नगर में जाना पड़ेगा। जहाँ रहने वाले लोग स्वार्थी एवं पैसे के लालची हैं, जिन्होंने गांव की इस सुंदरता को कभी देखा ही नहीं है।
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