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1800-102-2727यह पंक्तियां कवि रसखान के सवैये से ली गई है। कवि ने अपनी वृंदावन जाने की मंशा को दर्शाया है वह कहते हैं कि यदि उन्हें मनुष्य का जन्म दोबारा मिला तो वह गोकुल में ग्वालों के साथ रहेंगे और यदि पशु बने तो ब्रज में नंद की गायों के साथ रहेंगे। वह पत्थर बने तो गोवर्धन पर्वत बनेंगे जिसे भगवान कृष्ण ने अपनी तर्जनी उंगली पर उठाकर ब्रज वासियों की रक्षा की थी। यदि पक्षी का जन्म मिला तो यमुना किनारे कदम्ब की डाल पर रहेंगे।
कृष्ण भक्त कवि रसखान कहते हैं कि वे कृष्ण की लाठी व कंबल के लिए तीनों लोकों का राजपाट त्याग देंगे। नंद की गाय चराने के लिए आठ सिद्धियां व नौ निधियों का सुख भी छोड़ देंगे। कवि ब्रज के वन बगीचों को देखने के बाद अपनी आंखें इनसे हटा नहीं पा रहे। जब से उन्होंने करील की झाड़ियों को देखा है, वे इन पर करोड़ों सोने के महल भी वार देने को तैयार हैं।
प्रस्तुत पंक्तियों में गोपियाँ कहती हैं कि वह श्री कृष्ण जैसा दिखने के लिए अपने सिर पर मोर पंख का मुकुट पहन लेंगी, गले में कुंज की माला व पीले वस्त्र धारण कर लेंगी। किंतु वह मुरली अपने होठों से नहीं लगाएंगी क्योंकि उन्हें लगता है कि मुरली की वजह से ही कृष्ण हमसे दूर हुए हैं। वह मुरली को गोपियों से अधिक प्रेम करते हैं इसलिए उसे अपने होठों से लगाए रखते हैं।
कवि कहते हैं कि गोपियाँ कृष्ण को अपने दिमाग से नहीं निकाल सकती। जब कृष्ण अपनी मुरली बजाएंगे तो वह अपने कानों पर हाथ रख लेंगी भले ही कृष्ण अपनी मुरली की मधुर तान ही क्यों न बजायें । लेकिन अगर मुरली की धुन उनके कानों में चली गई तो वह खुद को नहीं रोक पायेंगी । उन्हें कृष्ण की मुस्कान अत्यंत मोहक लगती है। वे कृष्ण की तरफ सारी लाज, शर्म छोड़कर खिंची चली जायेंगी ।
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