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1800-102-2727मुंशी प्रेमचंद की इस कहानी में झूरी काका के दो बैल थे हीरा और मोती, दोनों में अत्यंत प्रेम था। एक बार झूरी ने दोनों को अपने ससुराल भेज दिया, बैलों ने समझा कि मालिक ने हमें बेच दिया। दिनभर के भूखे होने के बाद भी बेचे जाने के दुख में उन्होंने खाना नहीं खाया व रात में पगहे तोड़कर घर चले गए। सुबह घर के बाहर बैलों को देखकर झूरी स्नेह से गदगद हो गया परंतु झूरी की स्त्री यह देखकर जल उठी, दूसरे दिन झूरी का साला दोबारा बैलों को ले गया।
दिन भर काम करवाकर भैंसों को सूखा भूसा दिया और उन्हें मोटी रस्सियों से बांध दिया, अगले दिन बैलों ने बिल्कुल काम नहीं किया। जब उस निर्दयी ने हीरा की नाक पर डंडे मारे तो मोती ने गुस्से में हल, रस्सी, जोत सब तोड़ दिए। रात को भैरो की छोटी-सी लड़की उन्हें एक-एक रोटी दे गई, उस लड़की की सौतेली मां उसे मारती रहती थी। दोनों बैल दिन भर डंडे खाते थे, एक दिन लड़की ने तरस खाकर दोनों बैलों को खोल दिया। दोनों भागे, रास्ता भूलकर मटर के खेत में पहुंच गए इतने में एक सांड उनसे लड़ने आने लगा। दोनों ने एकजुट होकर उसे पछाड़ दिया, मोती मटर के खेत में घुस गया, तभी गांव वाले लाठियां लेकर दौड़े और दोनों मित्रों को पकड़कर बंद कर दिया।
दिन भर खाने को कुछ ना मिला, वहाँ कई बकरियां, घोड़े, गधे भी थे और सभी भूखे थे। हीरा और मोती ने बाड़ी की कच्ची दीवार तोड़कर सभी जानवरों को आज़ाद कर दिया। हीरा की रस्सी नहीं टूट रही थी दोस्ती में दोनों बैलों ने साथ रहने का निर्णय लिया, सात दिनों तक भूखा रखकर उन्हें एक कसाई को बेच दिया। कसाई के साथ जाते हुए बैल रास्ता पहचानकर झूरी के घर चले गए। झूरी और बैलों ने मिलकर कसाई को भगा दिया और झूरी बैलों की नादों में भी खरी, भूसा, चोकर भर दिया गया।
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