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1800-102-2727प्रस्तुत रिपोर्ताज 'इस जल प्रलय में” में लेखक फणीश्वर नाथ रेणु ने 1967 में आई विनाशकारी बाढ़ का वर्णन किया है। उस बाढ़ के साक्षी खुद लेखक भी रह चुके हैं। वे गांव में जहां रहते थे वहां बाढ़ से ग्रस्त लोग शरण लेने आते थे। लेखक का बाढ़ के सिद्धांत से पुराना नाता था क्योंकि लेखक 10 वर्ष की आयु से ही बाढ़ पीड़ित लोगों के लिए राहत कार्यकर्ता के रूप में कार्य करते आ रहे थे और उन्होंने 10वी कक्षा में बाढ़ पर लेख लिखकर प्रथम पुरस्कार भी प्राप्त किया था।
लेखक ने कई उपन्यास और कृतियों में बाढ़ के विनाशकारी रूप को वर्णित किया था पर उन्होंने कभी बाढ़ को नहीं देखा था। परंतु जब पटना में विनाशकारी बाढ़ आई थी, उसे लेखक ने स्वयं भोगा था। बाढ़ में स्थानीय निवासी के साथ मुख्यमंत्री के आवास स्थल तक डूब गए थे। लेखक की चिंता तो तब बढ़ गई जब पानी उनके स्टूडियो तक आ पहुंचा। उस दिवस लेखक की आंखों में देर रात तक नींद नही थी। वे लिखना चाहते थे, उन्हें सन 1947 में मनिहारी क्षेत्र की बाढ़ याद आ गई। जब लेखक अपने गुरु के साथ नाव पर दवा, तेल, दियासलाई आदि जरूरत का सामान लेकर बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए गए थे। जब वे एक टीले के समीप पहुंचे तो पाया कि कुछ लोग लोकनृत्य कर रहे थे और मछली पकाकर खा रहे थे।
रात के लगभग ढाई बज चुके थे परंतु पानी अब भी नहीं आया था, लेखक बिस्तर में लेटे हुए ही कुछ लिखने का सोचते है और उन्हें नींद लग जाती है। सुबह साढ़े पांच बजे जब लोगों ने लेखक को जगाया तो वे देखते है कि हर जगह पानी भर चुका था मोहल्ले के लोग शोर मचा रहे थे। यह देखकर लेखक सोचते है कि काश उनके पास कैमरा या टेप रिकॉर्डर होता तो वे इस सारे दृश्य को कैद कर लेते परंतु उनके पास ये सब न था उनकी कलम भी चोरी हो गई थी। अब उनके पास जल के अतिरिक्त कुछ भी न था हर जगह केवल पानी ही पानी था।
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