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1800-102-2727'रीढ़ की हड्डी' सामाजिक रूढ़िवादी प्रथा पर आधारित एक एकांकी है, जिसे लेखक जगदीश चंद्र माथुर ने बेहद नाटकीय ढंग से प्रस्तुत किया है। इस एकांकी में उमा के पिता उसकी शैक्षणिक योग्यता को छुपाकर उसका विवाह कराना चाहते हैं क्योंकि लड़के के पिता को कम पढ़ी-लिखी बहू चाहिए थी। उमा को देखने के लिए लड़के वाले आने वाले होते हैं। उसके पिता बड़े उत्साहित थे मगर उमा खिन्न मन से बैठी हुई थी। वह ऐसे घर कतई नहीं जाना चाहती थी जहां उसके शिक्षित होने पर आपत्ति जताई जाए।
'रीढ़ की हड्डी' सामाजिक रूढ़िवादी प्रथा पर आधारित एक एकांकी है, जिसे लेखक जगदीश चंद्र माथुर ने बेहद नाटकीय ढंग से प्रस्तुत किया है। इस एकांकी में उमा के पिता उसकी शैक्षणिक योग्यता को छुपाकर उसका विवाह कराना चाहते हैं क्योंकि लड़के के पिता को कम पढ़ी-लिखी बहू चाहिए थी। उमा को देखने के लिए लड़के वाले आने वाले होते हैं। उसके पिता बड़े उत्साहित थे मगर उमा खिन्न मन से बैठी हुई थी। वह ऐसे घर कतई नहीं जाना चाहती थी जहां उसके शिक्षित होने पर आपत्ति जताई जाए।
वह उन्हें ये दर्शाती है कि वे भी तो उमा को किसी वस्तु और भेड़-बकरी की ही तरह समझ रहे थे। आगे उमा बताती है की वह बी.ए पास है और छात्रावास में रह चुकी है। वह लड़के के पिता से कहती है कि उनके बेटे यानी शंकर को किस हरकत के चलते छात्रावास से मार कर बाहर निकाला था। वह कहती है कि अपने बेटे से पूछिए की उसकी रीढ़ की हड्डी है भी या नहीं है यह कहकर वह शंकर के आत्मसम्मान पर प्रहार करती है क्योंकि उसने जो किया वह शर्मनाक था। उमा की बातें सुनकर दोनों पिता बेटे और खुद उमा के पिता के भी होश उड़ जाते है, जिसके बाद शंकर और उसके पिता वहां से चले जाते है।
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