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1800-102-2727'मेरे संग की औरतें' पाठ लेखिका मृदुला गर्ग द्वारा लिखा गया संस्मरण है, जिसमें सारी कहानी लेखिका की नानी के व्यक्तित्व के इर्द-गिर्द ही घूमती है। लेखिका बताती हैं कि उनकी नानी को उन्होंने कभी नहीं देखा। लेखिका ने केवल उनके बारे में सुना है, और वे बताती हैं की उनकी नानी एक सरल स्वभाव की अशिक्षित और पर्दे में रहने वाली महिला थीं। नानी के विवाह के बाद उनके पति वकालत की पढ़ाई के लिए विदेश चले गए थे। विदेश में रहने के चलते नाना पर विदेशी परंपरा की छाप देखने को मिलती थी। विदेश से लौटने के बाद भी नाना का रहना-बोलना सब विदेशियों की भांति ही था। लेखिका आगे बढ़ते हुए ये बताती है कि उनकी माँ आम औरतों की तरह नहीं थीं। वे उन्हें कभी दुलारती या भोजन पकाकर नहीं खिलाती थी। वे अपना ज्यादातर समय पुस्तक पढ़ने, साहित्य विषय पर चर्चा करने और संगीत सुनने में बिताती थी। लेखिका के अतिरिक्त उनका भाई व तीन बहने भी लेखन कार्य को समर्पित हो गए।
लेखिका अपनी माँ से जुड़ा एक किस्सा बताती हैं कि एक दिन उनकी माँ के कमरे में एक पेशेवर चोर घुस आया जिसके बाद माँ ने उसे ऐसे समझाया कि वह ये सब गलत काम छोड़कर खेती- किसानी में लग गया। लेखिका अपनी माँ और नानी से बहुत प्रभावित थीं। उनके घर की औरतों के मन में कभी-भी एक महिला होने की हीन भावना नहीं जागी। लेखिका एक कर्मठ महिला थी, उन्होंने अकाल राहत कोष के लिए धन जमा किया और एक प्राइमरी स्कूल भी खोला। अपने अडिग स्वभाव और दृढ़ता से लेखिका ने ऐसे कई कार्यों को पूर्ण किया था।
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