निर्मल जी की इस कहानी के दो प्रमुख पात्र हैं – साँप और बाज़। साँप समुद्र किनारे पत्थरों में बनी अँधेरी गुफा में रहता था , उसे उस स्थान पर कोई हानि नहीं पहुँचा सकता था। एक दिन एक घायल बाज उसकी गुफा में आ गिरता है । बाज साँप को बताता है कि उसका अंतिम पल आ गया है, पर उसने अपने जीवन के हर पल का आनंद उठाया है।
बाज साँप को कहता है कि आकाश में उड़ना आनंददायक होता है वह एक अंतिम बार उड़ान भरना चाहता है। साँप अपने को बचाने के प्रयास से तथा अंतिम इच्छा पूरी करने के लिये बाज को उड़ने के लिए प्रोत्साहित करता है, किन्तु उड़ने के प्रयास में बाज नदी में गिर जाता है और बहता हुआ समुद्र में गायब हो जाता है।
साँप के मन में भी उड़ने की इच्छा जागती है। वह उड़ने के लिये अपने शरीर को हवा में उछालता है, तो ज़मीन पर गिर जाता है, किन्तु बच जाता है । वह सोचता है आकाश में कुछ नहीं है, सुख तो जमीन में है इसलिए वह फिर उड़ने का प्रयास नहीं करेगा।
साँप ने कुछ समय बाद सुना जैसे लहरें बाज को श्रद्धांजलि दे रही थी, जिसने वीरता से अपने प्राणों की बाजी लगा दी। लेखक कहते हैं वास्तव में जीवन उन्हीं का है जो उसे दाव पर लगा कर चलते हैं, जो मौत को सामने देख कर भी अपना रास्ता नहीं बदलते।
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