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1800-102-2727प्रस्तुत यात्रा वृत्तांत “सागर यात्रा” मूल रूप से “टी. एस. चौधरी” जी द्वारा लिखित हैं , जिसका हिंदी अनुवाद “बृज मोहन गुप्ता” द्वारा किया गया हैं । बृज मोहन गुप्त प्रथम भारतीय नौका यात्रा के वर्णन में कहते हैं कि इस अभियान में 10 सदस्य दुनिया का चक्कर लगाने के लिए तृष्णा नाम की नौका पर सवार हुए थे। यह प्रथम भारतीय नौका यात्रा थी जो विश्व के चक्कर लगाने के लिए निकली थी । इसके माध्यम से उन्होंने यात्रा के कुछ अंशों का उल्लेख किया है।
उन्होंने नौका का जीवन अति व्यस्त और संघर्षपूर्ण बताया, चौबीसों घंटे तृष्णा के चक्के संभालने के लिए आदमियों की जरूरत थी। वे सभी बारी बारी से नौका का चक्का संभालते थे । हमेशा एक सदस्य माँ की भूमिका निभाता था, जिसे खाना पकाना, बर्तन मांजना और शौचालय की सफाई जैसे काम करने पड़ते थे। नौका पर जीवन बहुत व्यस्त था , उन्हें आराम या मनोरंजन करने का समय ही नहीं मिलता था । इतनी व्यस्तता के बाद भी वे नौका पर एक “खुशी का घंटा” करके समय बिताते थे । नौका पर पानी की समस्या भी हमेशा बनी रहती थी, पहनने के लिए केवल 2 जोड़ी कपड़े होने के कारण उन्हें बार-बार धोना पड़ता था।
इस यात्रा में आने वाली मुश्किलों से सभी भली भांति परिचित थे किन्तु फिर भी इन्होंने इस यात्रा को पूरी करने का सोच रखा थे । उन्हें यात्रा के शुरुआती दिनों में ही खराब मौसम का सामना करना पड़ा थे किन्तु फिर भी उन्होंने अपनी यात्रा को जारी रखा और नौका पर मरम्मत का काम करते रहते थे।
10 जनवरी 1987 को 54000 किलोमीटर की दूरी मापकर 470 दिन की इस विश्व यात्रा को सुबह 6:00 बजे मुंबई बंदरगाह पहुंचकर खत्म किया गया । साढ़े 15 महीने से बिछड़े परिजन, मित्रगण और सभी शुभचिंतक पूरे गेटवे ऑफ इंडिया पर स्वागत के लिए खड़े थे। 26 जनवरी को राजपथ पर तृष्णा की झांकी निकलने वाली थी, 6 दिनों में तृष्णा दिल्ली पहुंची और गणतंत्र दिवस के परेड में भाग लिया। सागर यात्रा एक साहसिक एवम रोमांचक यात्रा थी ।
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