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NCERT Solutions for Class 8 हिंदी दुर्वा पाठ 2:दो गौरैया

प्रस्तुत कहानी “दो गौरेया” को “भीष्म साहनी” जी ने लिखा है । लेखक अपने घर में अपने पिताजी और माताजी के साथ रहते थे  ।उनके पिताजी को यह घर सराय लगता था , क्योंकि तरह-तरह के पक्षियों ने डेरा डाल रखा था।  घर के आँगन में आम का पेड़ था, जिस पर सारे पक्षी निवास करते थे।लेखक के पिताजी को तोते, कौवा, कबूतर, और गोरैया सभी की आवाज शोर-सी लगती थी जबकि बाहर वालों का कहना थे  कि ये सभी गाना गा रहे नाकी शोर कर रहे । घर के अंदर भी ऐसा ही कुछ उधम मचा हुआ रहता था। चूहा, बिल्ली और चमगादड़ सभी ने तंग कर रखा था, कमरों के आसपास घूमते रहते थे जैसे कसरत कर रहे हो। घर में छिपकलियां, चींटी सभी अपना घर पर अधिकार दिखाते थे । इन सभी ने लेखक के घर को घर नहीं रहने दिया उसे जंगल जैसा बना दिया था। ऐसा प्रतीत होता था कि जैसे इस घर में सिर्फ उन लोगों का ही हिस्सा है । लेखक एवं उनके परिवार से इन जीव जंतु का कोई लेना देना नहीं था और वे हर संभव प्रयास से परिवारजन को परेशान करते रहते थे ।

ये सभी जीव जंतु पूरे दिन शोर किया करते थे जिससे घर की शांति भंग रहा करती थी । लेखक एवं उसका परिवार हर रूप से प्रयास करता थे  इन सभी को घर से बाहर भेजने का किन्तु किसी ना किसी तरह ये सब वापस आ जाते थे । लेखक के परिवार ने हर संभव प्रयास करें किन्तु वे असफल रहे । लेखक के परिवार ने इन सभी को स्वीकार कर लिया था और आम दिनों की तरह जीवन यापन कर रहे थे । तभी एक दिन दो गोरैया सीधे घर के अंदर घुस आए और घर में इधर उधर उड़ कर हर जगह को भली भांति देखने लगे। कभी वे पंखो पर जाते तो कभी अलमीरा के ऊपर तो कभी रसोई घर में , इस पर लेखक के पिताजी कहते हैं कि वो दोनों घर का निरीक्षण कर रहें , उनके रहने लायक यह घर है भी कि नहीं । पंखे पर अपना बिछावन बिछा गौरेया ने यह साबित कर दिया कि उन्हें यह घर पसन्द आ गया है, पर शायद लेखक के पिताजी को यह पसंद नहीं आया । क्योंकि गौरेया ने पंखे के ऊपर अपना घर बना लिया था और वे घर की महंगी कालीन को गंदा किए जा रहे थे।

लेखक के पिताजी ने लाठी लेकर उन दोनों को भगाना शुरू किया किन्तु  वो दोनों दयनीय सा चेहरा बना अपने घोसले में डर कर छिपी बैठी रही  और वो अपने घर से बाहर ही नहीं आ रहीं थी । बाद में लेखक के पिताजी को यह ज्ञात हुआ कि उन दोनों गौरैया को तो वो भगाने में सफल हुए थे किन्तु उनके बच्चे वहीं रह गए थे । उन नन्हें बच्चों को अपने परिवार के लिए परेशान होता देख लेखक के पिताजी ने गौरैया को वापस घर के अन्दर आने दिया। परेशानी में गोरैया के माँ-बाप को उन्हें संभालते देख पिताजी के चेहरे पर मुस्कान आ गई और उन्होंने इन सबको अपने घर में रहना स्वीकार कर लिया ।

 

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