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1800-102-2727प्रस्तुत कविता “गुड़िया” को “कुंवर नारायण” द्वारा रचित किया गया है। कविता में कवि ने बच्चों के खिलौनों के प्रति प्रेम एवं मनोभाव को प्रदर्शित किया है । कविता में कवि ने बच्चों की रूचि के अनुसार खिलौने की चर्चा की है। हर प्रदेश में अलग-अलग उत्सव पर तरह-तरह के मेले लगते हैं, जैसे दीपावली, दशहरा, जन्माष्टमी आदि। कवि ने मेलों में अलग-अलग वस्तुएँ बेचने वाली नाना प्रकार की दुकानें देखी और घुमी, पर उसने छोटी और बहुत प्यारी-सी गुड़िया को एकबुढ़िया से खरीदा है।
उसके मन को यह गुड़िया पहली नज़र में ही भा गई थी , इसलिए उसने मोल-भाव करके गुड़िया खरीद ली। मनुष्य की यह स्वाभाविक आदत होती है वो जब तक किसी वस्तु के लिए आश्वस्त ना हो जाएं उसे वह नहीं खरीदता , इसी स्वभाव की वजह से कवि ने गुड़िया के बारे में अच्छी तरह जांच पड़ताल करी और उसके गुण जानकर ही मोलभाव किया। गुड़िया का बखान करते हुए कवि कहते हैं कि वह आंखें बंद कर सकती है, पिया-पिया बोल सकती है और वह बहुत ही सुंदर है। गुड़िया की काली मतवाली आंखें मनोहारी हैं ।
वैसे तो कवि जानता है कि यह गुड़िया बेकार चीजों से बनी हैं किन्तु उसके सौंदर्य से वो बच्चा अत्यंत प्रभावित हो गया है । कवि को वो इतनी पसंद आई की उसने बिना कुछ सोचे समझे उसे खरीद लिया । कवि गुड़िया के मन लुभावन रूप की चर्चा करते हुए लिखता है कि उसने सितारों से जड़ी लाल रंग की चुनरी पहनी है । कवि को उसका यह रूप अत्यंत सुहाना लगा कवि इसे बहुत चाहने लगा है। इसलिए वह हमेशा इसे अपनी अलमारी में सजाकर रखना चाहते हैं। कवि की अलमीरा में और भी बहुत से खिलौने हैं जिन में वो इस गुड़िया को उन सब की परी बना के रखना चाहते हैं । कवि ने अपनी अलमीरा में कागज के विभिन्न रंगों के फूल बना सजा कर रखें हैं ।
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