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1800-102-2727यह बाल कविता नयी उम्र के बढ़ते बच्चों के मन में हर समय हर चीज़ को देखकर सवाल उठते हैं, इसको समझाते हुए बताती है कि किस प्रकार दूर आसमान में रहने चाँद को देखकर एक 11 साल की छोटी, मासूम बच्ची के मन में न जाने कितने सारे सवाल आ जाते हैं। वो बिना कुछ सोचे वो सारे सवाल चाँद से पूछने लगती है कि वैसे तो आप आकर में बिल्कुल गोल हो पर फिर भी आप हम सबको तिरछे ही क्यों नज़र आते हो? आपने तो आसमान में जड़े तारों के कितने सुंदर कपड़े पहने हैं, पर फिर भी आपका ये गोल चेहरा ही हम देख पाते हैं, वह प्यारी सी बच्ची चाँद से अपनी बातों को बढ़ाते हुए आगे कहती है कि क्या आपको कोई बिमारी है क्योंकि कभी आप बड़े हो जाते हो तो फिर बढ़ते ही जाते हो और कुछ दिन बाद छोटे होते हो तो बस फिर छोटे ही होते जाते हो? आप हमें पागल मत समझना क्योंकि अब हम भी जान गए कि आपका ये तिरछापन ओर ये छोटा बड़ा होना पक्का किसी बीमारी की ही वजह से है। इस बाल कवित को शमशेर बहादुर सिंह जी ने लिखा है। वे हिंदी व उर्दू के बहुत ही विद्वान कवियों में गिने जाते हैं। उन्हें कई बड़े सहित्य पुरुस्कारों से नवाजा गया है, जिसमे सहित्य अकादमी पुरस्कार, कबीर पुरुस्कार और मैथलीशरण गुप्त प्रमुख हैं। चाँद से थोसी सी गप्पे कविता में भी कवि ने अपनी साहित्य के प्रति अनोखी शैली को बड़े ही अनोखे ढंग से बताया है। ये एक मासूम बच्ची के दिल में उठने वाले सवालो से भरा है।
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