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1800-102-2727इस पाठ को अनुबंधोपाध्याय जी ने लिखा है। उन्होंने इस पाठ में गाँधी जी के जीवन के उस समय का वर्णन किया है जब वे साबरमती आश्रम में रहा करते थे। गांधीजी खुद बैरिस्टर थे पर वे साबरमती आश्रम में हर छोटे-बड़े काम को खुद ही करते थे। उन्हें किसी और से अपना काम करवाना पसन्द नहीं था लेकिन वे दूसरों के काम को बिना कुछ सोचे झट से कर देते थे। उनका मानना था कि जबतक आपके शरीर में शक्ति है तब तक आपको किसी और पर निर्भर नहीं होना चाहिये। एक बार की बात है उस समय आश्रम में कुछ काम चल रहा था और अक्सर ही आश्रम में अतिथि आते-जाते रहते थे। एक अतिथि सुबह उठा और वो अपने बिस्तर को किसी सही जगह रखने के लिये इधर-उधर स्थान देखने लगा तभी गाँधी जी उसका बिस्तर उठाकर निश्चित जगह पर रख दिया। वैसे गाँधीजी के शरीर की बात करें तो वे बहुत पतले थे, क्योंकि वे किसी भी समय ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अनशन पर बैठ जाया करते थे लेकिन उनके अंदर काम को करने की फुर्ती बहुत थी। लेखक ने खुद उन्हें आश्रम में झाड़ू लगाते और साफ-सफ़ाई करते देखा और वे इस बात से दंग रह गए कि इतने सम्मानीय होने के बावजूद भी गाँधी जी को किसी भी अतिथि के सामने आश्रम के कामों को करने में शर्म नहीं आती थी।
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