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1800-102-2727इस कविता को 'सुमित्रानंदन पंत' जी ने लिखा है। पन्त जी को प्रकृति और कल्पनाओं आदि के बारे में लिखने का बहुत शौक था और यह उनकी रचनाओं में अक्सर देखने को मिलता है। यह कविता 'मैं सबसे छोटी होऊँ' भी एक छोटी-सी बच्ची की मन की कल्पनाओं से भरी हुई है। बच्ची चाहती है कि वो अपनी माँ की छोटी संतान रहे और हमेशा छोटी ही बनी रहे क्योंकि जब बच्चे छोटे होते हैं तब माँ उन्हें हाथों से नहलाती है, तैयार करती है , खाना खिलाती है और हमें सुंदर-सा सजा देती है। जब यही बच्चे बड़े हो जाते है तब माँ का अपने बच्चों को प्यार करने का तरीका भी बदल जाता है। बड़े होने पर वह ना तो पहले की तरह अपने हाथों से खाना खिलाती है और न ही सजाती है, जिससे कहीं न कहीं माँ का प्यार भी कम हो जाता है। इन सभी कारणों को समझते और जानते हुए बच्ची चाहती है कि वो अपनी माँ की सबसे छोटी सन्तान रहे और हमेशा छोटी ही रहे, जिससे उसकी माँ का प्यार उसके लिये कभी कम ही न हो बल्कि हमेशा बढ़ता ही रहे और ज़िन्दगी भर उसकी माँ उसे एक ही समान प्यार करती रहें। उसे नहलाएं, सुंदर फ्रॉक पहनाकर सजाये, हमेशा अपने ही हाथों से खाना खिलाएं और वह अपनी माँ की सदैव चहेती ही रहे।
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