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1800-102-2727इस पाठ को हमारे भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जी ने अपनी पुत्री प्रियदर्शिनी को एक पत्र के रुप में तब लिखा था जब वे मसूरी के स्कूल में पढ़ाई कर रही थी। नेहरू जी अपने पत्र में लिखते है कि पुत्री तुम्हें अपने इतिहास के विषय में भारत और यूरोपीय देशों के बारे में पढ़ाया जाता होगा पर बेटी संसार सिर्फ भारत और यूरोपीय देशों तक ही सीमित नहीं है, संसार बहुत बड़ा व खूबसूरत है लेकिन इसमें रहने वाले सभी लोग हर छोटी- बड़ी चीज़ से एक-दूसरे से जुड़े हुए क्योंकि कहीं-न-कहीं हम सब एक है और इसकी संस्कृति और केवल दो-तीन द्वीपों तक ही सीमित नहीं है वो भी बहुत विशाल है। इन सभी चीजों और बातों को जानने व समझने के लिये केवल किताबी ज्ञान काफ़ी नहीं है तुम्हें इससे आगे बढ़कर इसमें छिपी अनगिनत चीज़ो को ढूढ़ने की कोशिश करनी चाहिए। नेहरू जी अक्सर ही अपनी बेटी प्रियदर्शिनी यानी इंदिरा गाँधी को इस तरह के पत्र लिखा करते है, जिनमें वे उनके हालचाल भी पूछते थे और एक आदर्श पिता की तरह सीख भी देते थे। वे आगे अपने पत्र में कहते है कि पहले के ज़माने के लोग ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं होते थे फिर भी उन्हें देश दुनियां की पूरी खबर हुआ करती थी इसलिये जीवन जीने के लिये केवल किताबी ज्ञान काफ़ी नहीं है। जिस तरह कंकड़ से समुद्र की लहरों के पता लगाया जा सकता है ठीक उसी तरह एक जगह रहकर भी संसार को जाना जा सकता है ।
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